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________________ PP ACCUMS / हूँ कि चन्द्रप्रभा आप से अवश्य मिलेगी। पहिले तो मैं ने यह समझा था कि आप राजकार्य में प्रवृत्त होकर उसे विस्मृत कर देंगे। किन्तु जब ऐसा न हो सका,एवं प्रतीत होता है कि उसके बिना आप के प्राणों पर भी सङ्कट है। ऐसी स्थिति में मेरा कर्तव्य हो जाता है कि आप की इच्छा की पूर्ति करूँ। आगे जो अपकीर्ति फैलेगी, उससे निपट लिया जायेगा। अतएव आप धैर्य से रहें। कारण, स्थिर चित्त से किये हुए कार्य में किसी प्रकार के विघ्न की सम्भावना नहीं रहती।' मन्त्री के लुपावने आश्वासन से राजा मधु को बड़ा सन्तोष हा। उन्होंने अपने विरहो मन को शान्त किया। तत्पश्चात् चतुर मन्त्री ने एक आडम्बर रचा। उसने अनेक मित्र राजाओं को यह सन्देशा भिजवाया कि आप लोगों को अपनी-अपनी रानियों के साथ यहाँ शीघ्र माना है। बसन्त ऋतु में राजा मधु सपत्नीक अपने मित्र राजाओं एवं उनकी रानियों के साथ उद्यान में क्रीड़ा करने जायेंगे। नृपति मधु का जामन्त्रण पा कर भित्र राजाओं को बड़ी प्रसन्नता हुई। वे अपनी-अपनी रानियों को साथ लेकर अयोध्या पहुँच गये। - सुललित अक्षरों में लिख कर एक आमन्त्रण राजा हेमरथ को भी भेजा गया। राजा मधु का निमन्त्रण पत्र पाकर राजा हेमरथ को बड़ो प्रसन्नता हुई। उसने अपनी प्रिया चन्द्रप्रभा को बुला कर कहा- 'हे प्रिये ! देखो राजा मधु मुझ पर कितने प्रसन्न हैं। उन्होंने कृपापूर्वक मुझे स्नेह-स्मरण किया है। इसे तुम भी पढ़ लो।' रानो चन्द्रप्रभा पति से लेकर उस पत्र को पढ़ने लगी! उसमें निम्नलिखित वाक्य लिखे थे-'प्रिय राजा हेमरथ ! तुम्हारी भक्ति से मुझे बड़ी प्रसन्नता है। तुम मेरे परम प्रिय मित्र भी हो। तुम मेरे समस्त सामन्तों में अग्रगण्य हो। मेरे समग्र राज्य को तुम अपना ही समझो। तुम्हें न तो सङ्कोच करना चाहिये एवं न मुझसे भेदभाव रखना चाहिये। मैं ने इस बसन्त ऋतु में राज-परिवार के साथ एक मास तक क्रीड़ा करने का विचार || किया है। अतएव तुम प्रेमभाव से अपनी प्रासप्रिया को ले कर यहाँ अवश्य पधारो। अन्य मित्र-राजा मी। अपनी-अपनी रानियों के साथ यहाँ पधार रहे हैं। तुम्हें चन्द्रप्रभा को लेकर अवश्य जाना चाहिये।' पत्र पढ / लेने के पश्चात् चन्द्रप्रभा ने निवेदन किया-'हे स्वामिन् ! मेरे निवेदन पर विचार करें। अपने सामन्त-राजाओं पर इतना स्नेह-भाव प्रकट करना कदापि अकारण नहीं होता। अवश्य ही इसमें कुछ-न-कुछ रहस्य नि होगा। राजागण कभी निःस्वार्थ प्रेम प्रकट नहीं करते। इसलिये आप वहाँ जाय भी, तो मुझे सङ्ग ले जाने का / Jun Gun an
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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