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________________ PP Ad Gunvalasur MS 64 गये। उस समय अयोध्या के सरोवरों की छटा निराली हो गयी। उत्फुल्ल पद्म-पुष्पों पर भ्रमरों के समूह नृत्य करने लगे। वे पुष्प त्रिलोक विजयी कामदेव के छत्र के सदृश शोभा देने लगे। कोयलों की कूक, भ्रमरों की गुआर, मधुर सङ्गीत, सुरीले गीत एवं मलयानिल की सुगन्धित वायु से श्रेणी नृत्य का शन होने लगा। उस समय एक भी ऐसा वृक्ष शेष नहीं था, जिसमें पुष्प न लगे हों एवं ऐसा पुष्प न था, जिस पर भ्रमरों की गुआर न होती हो। इस प्रकार चतुर्दिक बसन्त का साम्राज्य छा गया। पर राजा मधु तो चन्द्रप्रमा के विरह में विदग्ध हो रहे थे। उनकी कामानि मोतियों के हार, पद्मपुष्प, केले के पत्ते पंखे की वायु, चन्दन-ले ज्योत्सना आदि शोतलोपचार से भी शांत न हो सकी। वस्तुः विरहानि से सन्तप्त पुरुष के लिए पद्म चंदनादि औषधियाँ विष-तुल्य हो जाती हैं। इस प्रकार की वियोगाग्नि में दग्ध होते हुए राजा मधु को देख कर समग्र परिवार एवं कुटुम्ब के लोग शोकग्रस्त हुए। किन्तु मन्त्री ने लज्जा एवं भय से राजा को अपना मुख तक नहीं दिखलाया। वियोग की अग्नि से पीड़ित होकर राजा मधु ने आहार-जल सब कुछ त्याग दिया। ___एक दिन विचित्र घटना हो गयी। राजा मधु के जीवन रक्षा की आशा न देख कर कुटुम्बीजनों ने उन्हें भूमि पर लिटा दिया। जब मन्त्री को इस घटना का विवरण ज्ञात हुआ, तो वह तत्काल उस स्थान पर माया; जहाँ पर राजा बेसध पडे हए थे। विनयपूर्वक राजा को नमस्कार कर वह सामने बैठा गया। राजा ने उसकी ग्रीवा में अपनी भुजायें डाल दी एवं जिज्ञासा को–'हे मन्त्री ! मेरी मृत्यु होने पर तेरे चित्त का समाधान कैसे हो सकेगा ?' वह चतुर मन्त्री भी कुछ काल तक चिन्तित रहा एवं उसने विचार किया-'राजा तो घोर | दुःख में हैं / मुझे क्या करना चाहिये ? कौन-सा प्रयत्न करूँ? यदि मैं कपट से राजा हेमरथ की प्रिथा चन्द्रप्रभा को हर लाऊँ, तो यह निश्चित है कि हमारे राजा की अपकीति फैलेगी एवं यदि उस नव-यौवना को इनसे न मिलाया जाए, तो इसमें संशय नहीं कि राजा का प्राणान्त हो जायेगा। किन्तु जब दोनों ही कार्य अनुचित हैं, तो मुझे क्या करना चाहिये ?' कुछ काल तक सोच-विचार कर लेने के पश्चात् मन्त्री ने यह निश्चय कर लिया कि चाहे जो हो, राजा को इच्छा पूर्ण होनी चाहिये। अगर राजा की मृत्यु हो गई, तो घोर अनिष्ट होगा। येन-केन-प्रकारेण किसी प्रकार भी चन्द्रप्रभा को ले आना चाहिये। ऐसा विचार कर चतुर मन्त्री ने राजा मधु से कहा-'हे महाराज! आप इस प्रकार चिन्तित एवं दुःखी क्यों हो रहे हैं ? मैं विश्वास दिलाता Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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