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________________ PPA C MS | देना।' सेनापति ने वैसा ही किया। रात्रि में निद्रामन राजा मधु के साथ समस्त सेना वटपुर को त्याग कर अयोध्या की ओर अग्रसर हो चली। प्रातःकाल समग्र सेना अयोध्या के समीप पहुँच गयी। राजा मधु का शुभागमन जान कर नगर-निवासियों को अपार हर्ष हुआ। वे स्वागत के लिए तोरण-ध्वजादिक से नगर को सजाने लगे। अयोध्या के प्रमुख श्रेष्ठीगण मांगलिक सामग्री भेट में लेकर राजा की सेवा में उपस्थित हुए। जब राजा मधु ने देखा कि यह तो अयोध्या नगरी है, तो उसे बड़ा दुःख हुआ उसने क्रोधित होकर अपने मन्त्री से कहा-'२ मूढ़ ! यह तू ने क्या किया ? क्या तुझे मेरे साथ ही छल करना था ? तू तो महा असत्यवादी प्रतीत होता है।' यह सुन कर प्रधान मन्त्री ने सेनापति को बुला कर पूछा- 'तू बिना आज्ञा के वटपुर को त्याग कर अयोध्या कैसे चला आया ?' सेनापति ने छद्म भय का अभिनय करते हुए करबद्ध निवेदन किया-'हे स्वामिन् ! मेरा अपराध क्षमा हो। मैं रात्रि के अन्धकार में पथभ्रान्त हो गया एवं अयोध्या पहुँच गया। यह अपराध मुझ से अनजाने में हुआ है, इसलिये क्षमा-याचना करता हूँ।' सेनापति का अनुरोध सुन कर राजा मधु मौन हो गये, किन्तु उसका हृदय कामाग्नि से दग्ध हो रहा था। उधर बन्दीजन जय-जयकार की ध्वनि करने लगे। महाराजा राजमार्ग से अयोध्या मे प्रवेश कर अपने महल। महाराज के शुभागमन से नगर में प्रफुल्लता छा गयी। सुहागिन स्त्रियों ने नृत्य-गीतादि के आयोजन से अनेकों उत्सव सम्पन्न किये। किन्तु राजा की चिन्ता दूर न हुई। वे असन-वसन-भूषण-सुगन्धित द्रव्यों से उदासीन हो गये। उन्हें नव-यौवन सम्पन्न, हाव-भाव विलासिनो एवं उन्नत उरोजोंवाली सुन्दरियाँ भी एक चन्द्रप्रभा के वियोग में हलाहल सदृश प्रतीत होने लगी। राजा की तो यह दशा थी, पर मन्त्री ने यह सोच कर राजा के निकट उपस्थित होना उचित नहीं समझा, क्योंकि वहाँ पहुँचते ही चन्द्रप्रभा से समागम की याचना सुनने को मिलेगी एवं विलम्ब हेतु उलाहने में कटु वाक्य भी। इधर विरह की दारुण ज्वाला से राजा की देहयष्टि श्रीहीन एवं शक्तिहीन हो गयी। कुछ काल व्यतीत हो जाने पर वसन्त ऋतु का आगमन हुआ। चन्द्रप्रभा के वियोग में राजा को यह ऋतु व्रण (घाव) पर नमक छिड़कने के सदृश प्रतीत होने लगी। वन-प्रान्तर में मारियों से माम के वृक्ष पुष्पित हो Jun Gun Anak Trust
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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