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________________ P.P.AC Gran MS | मिडिपाल, गदा, हल, मूसल, तलवार, लाठी आदि सभी शस्त्र प्रयुक्त होने लगे। ____ वहाँ की संग्राम-भूमि समुद्रवत् प्रतीत होने लगी। समुद्र में जल की तरंगें उठती हैं एवं यहाँ युद्ध में अश्व क्रीड़ा करने लगे। लहरों के उछलने से फैन राशि निकलती है जब कि युद्ध में स्वच्छ चमर दुल रहे थे। समुद्र || 2 तीर पर के पर्वतों को खण्ड-खण्ड कर देता है जब कि संग्राम में गजराजों के उन्नत मस्तक खण्ड-खण्ड हो रहे थे। समुद्र से विभिन्न प्रकार के मोती निकलते हैं जब कि यहाँ गजमुक्तों का ढेर लग रहा था। समुद्र को रत्नों की उत्पत्ति का स्थल कहा जाता है एवं यहाँ योद्धाओं के मुकुटों में से रत्न टूट-टूट कर गिर रहे थे। समुद्र में मगर होते है एवं यहाँ गजराजों के कटे पग मगर सदृश प्रतीत हो रहे थे। समुद्र में मत्स्य निवास करते हैं एवं युद्ध में अश्वों के छिन्न-भिन्न चरण मत्स्यों के सदृश लगते थे / समुद्र में कछुवे होते हैं एवं युद्ध में कटे हुए मस्तक कछुवे के समान हैं / समुद्र में काई होती है एवं संग्राम में सुभटों की आंत-मांस-अस्थि आदि। समुद्र में जल भरा रहता है जब कि युद्ध की भूमि रुधिर से प्लावित थी। इस प्रकार सारी सेना समुद्र के समान दीखने लगी। अनेक सुभट युद्ध में हताहत हुए। किन्तु अन्त में अयोध्या के राजा मधु की विजय हुई। उन्होंने राजा भीम को पराजित कर उसे बन्दी बना लिया। चारों ओर से राजा मधु की जय-जयकार होने लगी। उन्होंने राजा भीम को अपनी अधीनता स्वीकार करा के स्वदेश से निर्वासित कर दिया एवं उसके नगर का शासन-भार अपने विश्वासी सामन्तों को सौंप कर अपने नगर अयोध्या को प्रस्थान किया। _मार्ग में कितने ही राजाओं ने विजयी राजा मधु का स्वागत किया। राजा मधु के पुण्य के उदय से वे सभी प्रभावित थे। उन पर अपना आधिपत्य स्वीकार करा के राजा मधु अग्रसर हुए। किन्तु राजा को पूर्व घटना स्मरण हो आयी। उन्होंने मन्त्री से कहा-'मैं सेना के साथ वटपुर अवश्य जाऊँगा, जहाँ मेरे चित्त को अपनी ओर आकर्षित करनेवाली चन्द्रप्रभा रहती है।' उस समय मन्त्री ने विचार किया कि अवश्य ही राजा के चित्त में अभी तक चन्द्रप्रभा की स्मृति शेष है। इस समय हमें क्या करना चाहिये ? वस्तुतः एक राजा के लिए पर-स्त्री पर अनुरक्त होना उचित नहीं' अतः चतर मन्त्री ने राजा से कहा-'हे महाराज। जैसी जाज्ञा। हम वटपुर ही चलते हैं। आप तनिक भी चिन्ता न करें।' पर मन्त्री ने सेनापति को एकान्त में बुला कर समझा कर कहा-'रात्रि में तम सेना को प्रस्तुत कर वटपुर को त्याग कर सीधे अयोध्या हेतु प्रस्थान कर Jun Gun and Trust
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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