________________ P.P.Ad Gunanasuri MS सम्पन्न कराते रहते हैं। सीमा पर उत्तुङ्ग कोट है एवं समुद्र की प्राकृतिक खाई से घिरा नगर अपनी सुन्दरता में अत्यधिक रमणीय दिखता है। यहाँ देश-देशान्तर से मनुष्य आकर निवास करते हैं। समुद्र के मध्य में होने से ऐसा प्रतीत होता है कि यह घेरा इसलिये है कि रत्नों को लिए हुए कोई पलायन न कर जाए। रत्नजड़ित स्वर्ण-महलों से उस द्वारावती (द्वारिका नगरी) की शोभा अपूर्व दिखाई देती है। पण्यों (बाजारों में रत्नों के ढेर लगे हैं। लगातार गजराजों के आवागमन से राजमागं पंक (कीचड़)-युक्त हो रहे हैं। क्योंकि वहाँ के प्रतापी राजा सदैव वहीं स्थायी निवास करते थे, अतः द्वारावती संसार की प्रमुख राजधानी बन रही थी। वहाँ की नारियों का लावण्य देवांगनाओं को भी लजित करता था। वह नगरी ऐसी मोहक प्रतीत होती थी. मानो तीनों लोक के सार पदार्थों का संग्रह कर उसकी रचना की गई हो। हमारे कथा-काल में इसी द्वारावती नगरी में श्रीकृष्णनारायण नामक राजा राज्य करते थे। उस काल में न तो कोई वैसा ज्ञानी था, न दाता, न मोक्ता एवं न विवेकी। वस्तुतः वह अपनी प्रजा को पुत्र के तुल्य समझते थे। उन्होंने बाल्यावस्था में ही कंसादिक सदृश प्रबल शत्रुओं का विनाश किया एवं गोवर्धन पर्वत उठा कर गौओं को रक्षा की। यमुना नदी में कालिया नाग को नाथ कर उन्होंने नागसज्जा, धनुष एवं शह पाप किये थे, उन्होंने जरासंध के भाई अपराजित को युद्ध में परास्त किया, उनकी शूरता का वर्णन कहाँ तक किया जाए ? उनको समुद्राक्ष नामक देव ने समुद्र को पीछे हटा कर बारह योजन भमि प्रदान की. उनके अपूर्व बल को देख कर इन्द्र ने द्वारकापुरी की रचना के लिए कुबेर को आज्ञा दो। वे सब के मित्र थे, सब के रक्षक थे। वे याचकों के लिए कल्पवृक्ष सदृश, शत्रुओं के लिए राहु सदृश एवं यादववंशियों के कुलरूपी समुद्र की वृद्धि हेतु चन्द्रमा के तुल्य थे। उस समय ऐसा कोई अन्य राजा न था, जो उनकी समानता कर सके। उनके पराक्रम को देख कर अन्य राजाओं ने अपनी शूरता का अभिमान त्याग दिया था। उनमें गुणही-गुण थे, अवगुण तो थे ही नहीं। दिग्विजय की ओर आती हुई उनकी सेना के पदाचरण से मार्ग को धूलि से आकाश ऐसा व्याप्त हो जाता था, मानो वह कोई अन्य भूमि हो। उनकी निर्दोष महत्ता देख कर इन्द्र ने भी ऐश्वर्यादि का ममत्व त्याग दिया था। उनकी स्थिर बुद्धि गम्भीर एवं सज्जनों के पालन में तत्पर थी। जिसने पर-स्त्रियों को वक्षस्थल, शत्रुओं को पीठ एवं योचकों को नकार का वचन कभी नहीं दिया-ऐसे गुणयुक्त, Jun Gun Aaradhak