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________________ P.P.AC.Gurmathasuri MS. द्वितीय सर्ग इस लोक में जम्बूद्वीप नाम का एक प्रसिद्ध द्वीप है, जो स्वयंभ रमण समुद्र पर्यन्त विस्तृत है। उसके दक्षिण में भरतक्षेत्र सुशोभित है। तीर्थङ्करों के पश्चकल्याणक-स्थानों के होने के कारण वह तीर्थ-स्वरूप है। वहाँ जिनकल्याणकों की रचना करनेवाले देवों का सर्वदा आगमन होता रहता है। अतः वह पापनाशक पवित्र स्थान है। ___उसी भरतक्षेत्र में पुण्यमय एवं देवोपम सौराष्ट्र नामक एक देश है। वहाँ के उद्यानों के गन्ने भूमि पर नहीं गिरते। उन्हें भय रहता है कि हम नीच पुरुषों के द्वारा बाँधे जायेंगे। सरोवरों में कमल-पुष्पों की शोभा एवं राजहंसों का कलरव सदा चित्त को आकर्षित करता रहता है। निर्मल जल से परिपूर्ण वहाँ को सदानीरा नदियों के तट पर पुष्पों की अपूर्व शोभा एवं चक्रवाक के शब्दों से ज्ञात होता है कि मानो वे प्रवासियों का स्वागत कर रहे हैं। वहाँ के मनोहर जलाशय एवं दानशालायें नगर की महत्ता बतला रही हैं / ग्राम इतने समीप हैं कि एक ग्राम का कुक्कट उड़ कर अन्य ग्राम में सरलता से जा सकता है। उद्यानों की कतारें ऐसी हैं, मानो प्रकृति ने स्वर्गलोक की रचना कर दी हो। धान्य के पौधे परिपक्व हो कर इस प्रकार नीचे झुके हैं, मानो वे जल को पीने के लिए नीचे मुके हों। वहाँ कभी दुर्भिक्ष की आशङ्का नहीं रहती। नगर की बाह्यवर्ती भूमि शस्य-श्यामला दिखलाई देती है तथा वह गायों के चरने के लिए छोड़ दी गयी है। वहाँ के वन-प्रान्तर में नागबेलें सुपारी के वृक्षों से लिपटी हैं, अतः ताम्बूल सेवन करनेवाले केवल चूना ले कर ही वहाँ जाते हैं। स्थान-स्थान पर कदली, केला, ताड़ तथा दाख (अंगूर) की लतायें शोभा दे रही हैं ; अतः वहाँ के निवासी बिना कलेवा लिए ही यात्रा करते हैं। ऐसे सौराष्ट्र देश में स्वर्गपुरी सदृश द्वारिका नगरी है। वहाँ की अन्तरङ्ग एवं बहिरङ्ग दोनों शोभायें इन्द्र की अलकापुरी की समता करती हैं। वापिका, कूप, सरोवर, वन, वाटिका आदि देख कर अपूर्व मनोरमता का भान होता है। उस नगरी में सुवर्ण भीतों एवं मणिमुक्ताओं से खचित सात-सात, आठ-आठ खण्ड के भव्य प्रासाद (महल ) हैं। श्वेत प्रासाद के गवाक्ष में बैठी हुई नारियों को देख कर सहसा शुक्ल पक्ष की माशङ्का होती है / नगर में स्थान-स्थान पर जलाशय तथा जिन-मन्दिर निर्मित हैं, भव्य प्राणी धार्मिक उत्सव Jun Gun Aaradhak Trust C
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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