________________ 4 PP AC Gurrans MS तथा असंख्य उत्तर गुण भी मोक्ष के साधन बतलाये गये हैं। गृहस्थों के लिए भी बारह व्रत कहे गये हैं - पञ्च अणुव्रत, तीन गुणव्रत,(दिग्व्रत, देशव्रत, अनर्थदण्ड-त्याग) तथा चार शिक्षाव्रत (देशावकाशिक, सामायिक, प्रोषधोपवास, वैयावृत्त)। पुनः श्रावकों के अष्ट मूलगुणों का अर्थात् ऊम्बर, कठूम्बर, बड़, पीपर, पाकरइन पञ्च उदम्बरों का एवं मद्य, माँस तथा मधु-इन तीन मकारों के त्याग का वर्णन है। यह गृहस्थ-धर्म स्वर्गादि सुखों का प्रदाता है एवं परम्परा के अनुसार मोक्ष का साधन है। अतएव सत्पुरुषों को चाहिये कि वे सर्वप्रथम गृहस्थ-धर्म का हो पालन करें।' इस प्रकार धर्म का स्वरूप सुन कर श्रेणिक को बड़ी प्रसन्नता हुई। सो उचित ही है, धर्म-कथा का श्रवण कर सत्पुरुषों को सन्तोष होता ही है। तदनन्तर निवेदन करने का योग्य अवसर देख कर राजा श्रेणिक ने प्रार्थना की- 'हे भगवन् ! मेरी अभिलाषा है कि श्रीकृष्णनारायण के पुत्र प्रद्युम्न का चरित्र सुनँ। वह कहाँ उत्पत्र हुआ था ? वह कैसे शत्रुओं द्वारा हरण किया गया ? उसने कैसे-कैसे महान् कृत्य सम्पन्न किये ? उसे कैसो विभूतियाँ प्राप्त हुईं ? वह किस प्रकार पराक्रमो तथा शक्ति-सम्पन्न हुआ ? यह समग्र कथानक आप से सुनना चाहता हूँ, क्योंकि आप सन्देहरूपी अन्धकार को दूर करने में सूर्यवत् समर्थ हैं। अतएव आप कृपा करें, जिससे मेरा संशय-सन्देह दुर हो।' उत्तर में वीरनाथ भगवान ने कहा-'हे राजन् ! तुम्हारा प्रश्न बड़ा हो उत्तम है। प्रद्युम्न कुमार का पवित्र चरित्र पापों का क्षय करनेवाला है। बड़े पुण्य से ऐसे चरित्र सुनने की अभिलाषा चित्त में उत्पन्न होती है। सत्पुरुष ही इस निर्मल चरित्र को सुनते हैं, अन्य नहीं। इसलिये हे देवानांप्रिय महाभाग! दत्तचित्त हो कर श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न का चरित्र सुनो।' भगवान की ऐसी पवित्र वाणी सुन कर बारहों सभा के समस्त प्राणी स्थिर चित्त होकर बैठ गये। उनमें भी ऐसे उत्तम चरित्र को सुनने की उत्कण्ठा उत्पन्न हो गई। जिस अलौकिक चरित्र को सुनने को अभिलाषा महाराज श्रेणिक ने प्रकट की, श्रीवीरनाथ भगवान ने जिसका वर्णन भारम्भ किया, उस चरित्र का श्रवण करने से उत्तम पद प्राप्त होते हैं / अतएव सत्पुरुषों को चाहिये कि वे दत्तचित्त होकर इस चरित्र को सुनें। 4 र त्र।