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________________ PP Ad Gunun MS तत्पश्चात् मानन्द-मरी बजवा नागरिकों को एकत्रित कर परिवार के साथ भगवान की वन्दना के लिए चला। | जिस समय राजा श्रेणिक को समवशरण दृष्टिगोचर हुआ, तो वह गजराज से उतर पड़ा तथा अपने राज-वैश का परित्याग कर दिया। समवशरण में पहुँचते ही मानस्तम्भ के प्रभाव से उसका समस्त गर्व चूर्ण हो गया। उसके हृदय में अपूर्व भक्ति उत्पन्न हुई। उसने महावीर स्वामी की करबद्ध होकर तीन प्रदक्षिणाएँ दी तथा प्रसन्नतापूर्वक निम्न प्रकार स्तवन किया____ 'हे प्रभो ! आप तीनों लोक के स्वामी हैं। सत्पुरुष नित्य आपकी वन्दना करते हैं। आप कामविजयी हैं तथा संसाररूपी समुद्र में पोत तुल्य हैं / आप मोह सदृश विकट सुभट के विनाशक, चिन्तामणि प्रदायक तथा केवलज्ञान की प्रतिमूर्ति हैं। आदिपुरुष, तेजस्वी, स्वयम्भू तथा स्वयंबुद्ध आप ही हैं। हे स्वाभाविक आनन्द की प्रतिमूर्ति, दुःख-शोकादि विनाशक, जरा-मरणादि से रहित सम्यक रत्नत्रय से मण्डित, मान-माया से विमुक्त प्रथमानुयोग-करुणानुयोग-चरणानुयोग एवं द्रव्यानुयोग अर्थात् चारों शास्त्रों (वेदों) में आप की ही महिमा गायी गयी है। अपने अपूर्व तेज से आप कोटि सूर्यों के सदृश दैदीप्यमान हैं। कोटि चन्द्रमाओं के सदृश आप की कान्ति विश्व को प्रकाशित करती है / इसमें रश्चमात्र भी सन्देह नहीं कि आपके दर्शन मात्र से पाप समूल नष्ट हो जाते हैं / आप का ज्ञान तीनों लोकों में व्याप्त है / अतः आप ही विष्णु, महेश तथा ब्रह्मा हैं / आप संसार-बन्धन से सर्वथा मुक्त, सत्पुरुषों के तारक तथा धर्म-चक्र के चालक हैं / आप भव्य जीवों को सुख परम्परा की वृद्धि करते हैं। आप जिन ईश्वर अर्थात् जिनेश्वर हैं।' तत्पश्चात् राजा श्रेणिक ने जगद्गुरु श्री महावीर स्वामी का स्तवन कर अष्टांग नमस्कार किया। जल-गन्धादि अष्ट द्रव्यों से उसने भगवान की पूजा की तथा वहाँ की बारह समानों में जो मनुष्यों के लिए कक्ष (स्थान) नियत था वहाँ आसीन हो गया। ___इसके पश्चात् भगवान महावीर का धर्मोपदेश प्रारम्भ हुआ। उन्होंने बतलाया कि धर्म के दो मार्ग हैं'एक सागार तथा दूसरा अनागार। गृहस्थ के लिए सागार धर्म का विधान है तथा यतियों के लिए अनागार धर्म का। गृहस्थ-धर्म से स्वर्ग की प्राप्ति होती है तथा यति-धर्म से मोक्ष की। उक्त धर्मों के तेरह भेद हैं। पञ्च महाव्रत-अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य एवं परिग्रह / पञ्च समिति-ईर्था,भाषा,रषणा, आदान तथा निक्षेपण / तीन गुप्ति-मनोगुप्ति, वचनगुप्ति एवं कायगुप्ति / इसके अतिरिक्त यतियों के लिए अठ्ठाईस मूल गुण Jun Gun Aaradha Trust
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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