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________________ PPA C MS चन्द्र के सदृश मनोहर हरिवंश के श्रृङ्गारवत् श्रीकृष्णनारायण द्वारावती पर शासन करते थे। सत्यभामा उनकी पटरानी थी। शीलवती स्त्रियों में उसका अग्रगण्य स्थान था। अपनी सुन्दरता, भावभंगिमा एवं रूप-सम्पदा में वह देवाङ्गनाओं को भी परास्त करती थी। वह कभी-कभी अपने पतिदेव से प्रार्थना करतो कि हे स्वामिन् ! आप मुझे लक्ष्मी की उपमा क्यों देते हैं ? कारण लक्ष्मी चञ्चला हैं पर मैं कभी चञ्चला नहीं हो सकती। ( सत्यभामा एक विद्याधर की पुत्री थी। चन्द्रमा कलङ्की है, किन्तु वह रानी सदा निष्कलङ्क थी। इसलिए चन्द्रमा की उपमा उससे नहीं दी जा सकती।) उसने अपनी वेणी से मयूर को, ललाट द्वारा अष्टमी | के चन्द्रमा को, नासिका द्वारा तोते की चोंच को एवं नेत्र द्वारा हरिणियों को भी लजित कर दिया था। हमारी धारणा है कि उसकी समता न कर पाने से ही हरिणियाँ नगर को त्याग कर वन में रहने लगी थी। उसने अपनी दन्तावली से कुन्द की कलियों को, अधरों से बिम्बा फल को, कण्ठ से शङ्ख को तथा उरोजों से नारियलों को विजित कर लिया था। वह मालती की माला-सी कोमल, शुभ लक्षणों से युक्त तथा सुन्दर प्रतीत होती थी। उसने कटि की क्षीणता द्वारा सिंहनी को, नितम्बों को स्थूलता द्वारा पर्वत की सघनता एवं जङ्घाओं को सुचिक्कणता से कदली-स्तम्भ पर विजय पायी थी। उसके दोनों चरण-कमल रक्तिम, कोमल एवं शुभ लक्षण की रेखाओं से युक्त थे। उसकी देह-यष्टि कोमल थी, पर गति गजराज के सदृश थी। वह शास्त्रार्थ में साक्षात् सरस्वती की माँति कुशाग्र थी। महाराज श्रीकृष्ण ने पटरानी सत्यमामा के साथ आनन्द से सुखभोग किया। जैसे शिव को पार्वती तथा इन्द्र को इन्द्राणी प्रिय थीं, वैसे ही श्रीकृष्ण को सत्यभामा।। महाराज श्रीकृष्ण जिन धर्म में सदैव लीन रहते थे / वे इन्द्र को भाँति जिनेन्द्र की पूजा करते थे। सुपात्रों को दान देना उनका दैनिक कृत्य था। अपनी प्रजा का पालन करते हुए वे सदा जिनेन्द्र व श्रवण करते थे। अपनी स्त्रियों के साथ क्रीड़ा में रत रहते हए भी सम्यक्त्व को और उनकी दृष्टि रहती थी।। वे सख-समुद्र में निमग्र हो कर भी संसार को निस्सार समझते हुए अपना समय व्यतीत करते थे। महाराज श्रीकृष्ण के बलभद्र' नामक एक भ्राता थे, जो अपनी वीरता के लिए विश्व में प्रसिद्ध थे। सहस्रों यादव वीर / उनकी आज्ञा का पालन करते थे। म रण पटरानी सत्यभामा के साथ विभिन्न मनोरम उद्यानों में क्रीड़ा किया करते थे। उनके यहाँ द्रुतगामी अश्व, मदोन्मत्त गजराज तथा आज्ञाकारी सेवकों की संख्या || Jun Gun Aarada Trust
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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