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________________ PP Ad Gunanasuri MS 80 मिन पदार्थ है। जब कर्म के वश हो कर मात्मा देह को प्राप्त करती है, तो उसी बाकार की हो जाती है। वस्तुतः आत्मा लोकाकाश की तरह असंख्यात प्रदेशी है एवं कर्म लेप से रहित सिद्धस्वरूप है / वात्मा का इस प्रकार ध्यान करना चाहिये कि वह नित्य, विनाश रहित , वृद्धावस्था रहित , जन्म-कर्म रहित, बाधा रहित,गुण रहित अथवा गुण सहित है। जब आत्म-चिन्तन कर्म रहित भाव से होगा. तो अवश्य ही कर्मों का क्षय हो जायेगा। सब कर्मों के क्षय को मोक्ष कहते हैं। हे राजन! तुम्हारे प्रश्न के अनुसार मैं ने संक्षेप में बन्ध एवं मोक्ष के स्वरूप बतलाये हैं। इसका तात्पर्य यह है कि कर्म-बन्धन से प्रेरित हो कर यह जीव नरकादि गति को प्राप्त होता है, इसे घोर दुःख सहन करने पड़ते हैं। किन्तु जब कर्म बन्धन से मुक्त होता है, तो मोक्षावस्था में विनाश, भय, जरा, जन्म, वियोग, रोग, शोकादि से वर्जित हो जाता है।' ___ इस प्रकार शुद्ध शान्त स्वभाव के धारण करनेवाले हितमितभाषी मुनीश्वर श्री नन्दिवर्धन महाराज ने राजा के प्रश्नों का समाधान किया, जिससे उनको बडी प्रसन्नता हई। राजा अरिञ्जय ने प्रसन्न चित्त से मुनिराज को हाथ जोड़ कर पुनः निवेदन किया- 'हे हयालु प्रभो ! आप के अमृतमय उपदेश से मुझे संसार के स्वरूप का स्पष्ट पता लग गया। यह संसार क्षण-भंगुर तथा सारहीन है। इसका बन्धन महा दुःखदायी है। सैकड़ों रोगों का आक्रमण होता रहता है। पंचेन्द्रिय भोग विष के तुल्य हैं। यौवन क्षणस्थायी एवं निस्सार है। यह सुख-दुःखमय जीवन शरद् के मेघों के समान नष्ट हो जानेवाला है। काया-सम्बन्धो भोग भी पिकाक (इन्द्रायण) फल के समान महा दुःखदायी होते हैं। लक्ष्मी-धन-सम्पत्ति गजराज के कणों के समान चञ्चल हैं। अतएव हे महामुने! मेरा चित्त अब संसार के भोगादि से विरक्त हो गया है। अब मैं आपके चरण-कमलों के प्रसाद से जिन-दीक्षा ग्रहण करना चाहता हूँ, जिससे संसार-सागर से पार उतरने में सक्षम हो सकूँ। आप कृपा कर मुझे जिन-दीक्षा ग्रहण कराइये, जिससे भव-भवान्तर के जन्म-मृत्यु रूपो बन्धन से मुक्त होकर निराकुल अवस्था को प्राप्त होऊँ।' राजा अरिअय की प्रार्थना सुन कर मुनिराज ने कहा- 'हे वत्स ! तुम्हारा विचार बहुत हो उत्तम है। पुण्य से ही हृदय में ऐसे विचार उठते हैं। स्वर्गादिक की तो तुलना ही क्या, जिन-दीक्षा से मोक्ष तक प्राप्त हो सकता है। अतः तम्हें दृढ़ होकर जिन-दीक्षा ग्रहण करनी चाहिये।' मनि का उपदेश सनकर राजा परिचय ने Jun Gun Aaradhak Trust - -
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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