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________________ P.PAC Quba # भावशाली मुनिराज की कवा से आप चिरकाल तक शासन पद पर आसीन रहें एवं दीर्घजीवी हों।' यह शुभ सम्वाद सुनते ही राजा को बड़ी प्रसन्नता हुई। अपने सिंहासन से उठ कर उन्होंने सप्त पग प्रमाण अग्रसर होकर उस दिशा की ओर परोक्ष रूप से प्रणाम किया, जिस ओर मुनिराज विराजमान थे। पुन: माली को || पञ्चाङ्ग प्रसाद (पाँचों कपड़े) तथा षोडश आमरण पुरस्कार में दिये। प्रसत्रता के साथ माली ने वहाँ से वन की ओर प्रस्थान किया। तत्पश्चात् राजा ने आनन्द-भेरी बजवा कर नगर में यह सूचना प्रसारित करवा दी। सारे / नगर में उत्साह का संचार हो गया। सब लोग प्रसत्रता के साथ पूजा की सामग्री लेकर राजा के द्वार पर मा गये। उनके हृदय जिन-भक्ति एवं मुनि वन्दना के लिए उत्सुक हो रहे थे / नगरवासियों के एकत्रित हो जाने पर राजा अरिअय ने अपने कुटुम्बियों के संग गजराज पर आरूढ़ होकर मुनिराज की वन्दना के लिए प्रस्थान किया। धर्म-परायण प्रजाजन भी उनके संग-संग चलने लगे। जब वे सब उद्यान के निकट पहुंचे, तब गजराज से उतर कर राजा ने सारे राज्य-वैभव के सूचक अलङ्कारादि अपनी देह से त्याग दिये। उन्होंने मुनिराज के निकट जा कर भक्तिपूर्वक पञ्चाङ्ग नमस्कार किया एवं उनकी तीन प्रदक्षिणा दी। इसके पश्चात् अन्य मुनियों को नमस्कार कर वे सामने विनीत भाव से बैठ गये। अन्य भव्य जीव भी नमस्कार कर यथास्थान बैठे। अवसर पा कर राजा भरिअय ने हाथ जोड़ कर एवं मस्तक नवा कर मुनिराज से प्रश्न किया - 'हे स्वामी ! बन्ध तथा मोक्ष का स्वरूप क्या है ? किस कारण से संसारी जीवों को कर्म का बन्ध होता है तथा किस उपाय से कर्म-बन्धन को तोड़ कर वे अत्यन्त दुर्लभ मोक्ष अवस्था को प्राप्त करते हैं ? कृपया इस विषय को विस्तार से समझाईये।' राजा के प्रश्नों का उत्तर देते हुए मुनिराज ने कहा- 'हे भूपाल ! भगवान श्री जिनेन्द्र ने मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय तथा योग- ये पाँच कारण बन्ध के बतलाये हैं। निथ्यात्व के दो भेद कहे गये हैं - प्रथम निसर्गज अर्थात् अगृहीत तथा दूसरा गृहीत मिथ्यात्व। गृहीत मिथ्यात्व के एकान्त मिथ्यात्व, विपरीत | मिथ्यात्व, संशय मिथ्यात्व, कुविनय मिथ्यात्व तथा अज्ञान मिथ्यात्व पाँच भेद हैं-इस मिथ्यात्व कर्मयोग से | आठों प्रकार के कर्म उत्पन्न होते हैं। इसलिये भगवान श्री जिनेन्द्र ने इसे बन्ध का कारण बतलाया है। हे राजन् ! मिथ्यात्व के फलस्वरूप ही इस समय तीन सौ तिरेसठ प्रकार के मत फैले हुए हैं / षटकाय के जीवों Jun Gun Aaradhak
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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