________________ PAS श्रीवासुपूज्य तीर्थङ्कर के समय में ही था। इसी प्रसंग में वहाँ एक उल्लेखनीय घटना हुई। एक बार शालिग्राम के सुरम्य उपवन में श्री नन्दिवर्धन मुनीश्वर का आगमन हुआ। वे सर्वशास्त्र वेत्ता, कर्म-विनाशक, ज्ञाननेत्र धारण करनेवाले, गम्भीर, मनोगुप्ति एवं कायगुप्ति के पालन करनेवाले थे। उन्होंने यथोचित क्रिया के पश्चात् बिना माली की अनुमति के ही अशोक वृक्ष के तले में पड़ी हुई निर्जन्तु स्वच्छ शिला पर अपना आसन लगाया। वहाँ बैठ कर वे पाठ करने लगे। ठीक उसी समय माली ने भाकर देखा कि उपवन की शोभा अपूर्व हो रही है। उसे परम आश्चर्य तो हुआ, किन्तु जब उसने अशोक वृक्ष के तले विराजमान मुनिराज को देखा, तो उसका भ्रम निवारण हो गया। माली समझ गया कि यह सब मुनि का ही प्रभाव है। उसने बड़ी भक्ति से मुनि महाराज को प्रणाम किया एवं उनकी प्रदक्षिणा दी। इस भांति शुभलक्षण सम्पन्न समुद्र के समान गम्भीर बुद्धिवाले सुमेरु से स्थिर, पापरूपी वृक्ष को समूल नष्ट करनेवाले, अष्ट मदरूपी गज को सिंह के समान पराभूत करनेवाले, जितेन्द्रिय, सर्व परिग्रह रहित, मोक्ष-मार्ग के अनुगामी, मति-श्रुतअवधिज्ञान सम्पन्न नन्दिवर्धन यतीश्वर वहीं निवास करने लगे। _____ जब नगर-निवासियों को यह सूचना मिली कि उपवन में मुनि महाराज का आगमन हुआ है, तो वहाँ के जैन धर्म परायण नागरिक भक्ति-भाव से उनकी वन्दना के लिए गये। उनके अतिरिक्त भी कुछ अन्य सज्जनवृन्द लोक-लज्जा से, कुछ दूसरों के आवेदन से एवं कुछ कौतूहलवश देखने के लिए भी गये। यह भी उचित ही है, क्योंकि सब की मनोवृत्ति एक-सी नहीं होती। नगर-निवासियों का वह समूह नाना प्रकार से उत्सव मनाता हुआ जा रहा था। उन्हें इस प्रकार गमन करते हुए देख कर अग्रिभूति एवं वायुभूति ने विनोद में किसी श्रावक से जिज्ञासा को–'कहिये, आप लोग उत्तम-उत्तम वस्त्र धारण कर उपवन की ओर किसलिये जा रहे हैं ?' श्रावकों ने तत्काल उत्तर दिया'क्या तुम लोग आज ही बाकाश से पृथ्वी पर अवतरित हुए हो? क्या तुम्हें नहीं मालूम कि सर्वशास्त्र पारङ्गत, ऋद्धिधारक एवं देव-पूजित मुनि महाराज का उपवन में आगमन हुषा है ? हम लोग उन्हीं की वन्दना के उद्देश्य से उधर जा रहे हैं।' श्रावकों की बात सुन कर द्विज-पुत्रों ने अभिमान संयुक्त वाणी में कहा|| 'अरे मूखौ ! तुम्हारे मुख से कैसे निन्दा-सूचक शब्द निकल रहे हैं। दिगम्बरों की गणना तो जगत्-निन्द्यों मैं || Jun Gun A Trust