________________ भाए से लदे हुए वृक्षों पर रसिक भ्रमर गुजार करेंगे। नगर के अन्य उद्यान भी बिना ऋतु के ही पुष्पित | हो जायेंगे। कोयल के मधुर सङ्गीत एवं मयूरों के मोहक नृत्य के कोलाहल से उद्यान गूंज उठेंगे। आम के | | वृक्षों में मंजरी एवं फल देख कर सब के चित्त प्रफुल्लित होंगे। उस समय गूंगे भी बोलने लगेंगे। कुबड़े-लूले | एवं काने-अन्धे अपनी विकलांगता से मुक्त हो जायेंगे। कुरूपा स्त्रियाँ भी उस समय मृगनैनी सुन्दरी बन जायेंगी। तीव्र स्वरवाले का स्वर सुरीला हो जायेगा एवं कुरूप पुरुष भी रूपवान हो जायेंगे। उचित समय पर रुक्मिणी की देह में रोमांच प्रारम्भ होगा। हे राजन! जिस समय उपरोक्त घटनाएँ प्रारम्भ हों, तब समझ लेना चाहिए कि प्रद्युम्न का आगमन सत्रिकट है। जिसे तुम हथेली पर लिए बैठे हो, वह जगत्प्रसिद्ध नारद मुनि हैं। यह नवमा अधोवदन नाम का नारद मोक्षमार्ग में निपुण है। देशव्रतधारी यह नारद श्रीकृष्ण के हित के लिए उनके पुत्र का कुशलक्षेम सुनने के उद्देश्य से यहाँ बाया हुआ है, जिसका मैं ने संक्षेप में वर्णन कर दिया है।' ___फिर भी चक्रवर्ती को सन्तोष न हुआ। उन्होंने श्रीसीमन्धर स्वामी को नमस्कार कर प्रार्थना की'हे दया के सागर! आप श्रीकृष्ण-पुत्र प्रद्युम्न के चरित्र का आद्योपान्त वर्णन कीजिये। उसकी पूर्व भव में दैत्य से क्यों शत्रुता हुई ? उसने कौन-कौन से सत्कार्यों से अपार पुण्य का उपार्जन किया है ?' चक्रवर्ती के निवेदन पर श्रीसीमन्धर स्वामी ने सप्तमङ्गी स्वरूप दिव्य-ध्वनि में उत्तर दिया-'जम्बू द्वीप के प्रख्यात भरतक्षेत्र में मगध नाम का एक रमणीय प्रदेश है। उस प्रदेश में शालिग्राम नाम के नगर में सोमदत्त नामक ब्राह्मण रहता था। उसे अपने कुल एवं जाति का बडा अभिमान था। उसकी पत्नी अग्रिला अनिन्द्य सुन्दरी थी। सोमदत्त के दो पुत्र थे तथा वे दोनों ही वेद-पारङ्गत.धन-धान्य, विद्या-वैभव सम्पत्र थे। अपने पिता की तरह उनम भी अपने कुल एवं जाति का अभिमान पूर्ण मात्रा में था। अपने समक्ष शेष त्रिलोकीजन को वे हेय समझते थे। ज्येष्ठ पुत्र का नाम था अग्निमति एवं कनिष्ठ का नाम वायुमति था। उन दोनों भ्राताओं को जैन धर्म से प्रचण्ड विद्वेष था। अपने मिथ्यामिमान के वश में वे अजैन-धर्मावलम्बी थे। साथ ही उन्होंने अनेक भोले-भाले / त्र अज्ञानी प्राणियों को बहलावा देकर अपने धर्म में सम्मिलित कर लिया। उनका स्वभाव ही पदार्थों के स्वरूप के प्रतिकूल कार्य करना था। उनका कार्य-काल प्रसन्न चित्त, स्मृति-शास्त्रज्ञ एवं धर्म-तीर्थ के प्रवर्तक Jun Gun Aaradh