________________ P.P.ALGunratnasunMS. पराक्रमी कुल कैसा है ? उसका निवास स्थान कहाँ है एवं उसका अपहृत पुत्र कहाँ है ? किस शत्रु ने उसका अपहरण किया है ? वह लौट कर आयेगा या नहीं? कृपया आप समस्त वृत्तान्त पर प्रकाश डालिये।' अनन्त ऐश्वर्य के स्वामी जिनेन्द्र श्रीसीमन्धर स्वामी ने पूर्ववत् उत्तर दिया- 'हे राजन् ! तेरा प्रश्न बड़ा ही समयोचित है। इस वृत्तान्त के श्रवण-मात्र से श्रोतागणों के पापों का क्षय होगा। अतः ध्यान देकर सूनो भरतक्षेत्र में द्वारावती नाम की एक प्रसिद्ध नगरी है। वहाँ तीन खण्ड पृथ्वी का अधिपति (अर्धचक्री) नारायण श्रीकृष्ण राज्य करता है। वह यदुवंशियों का भूषण एवं हरिवंश का श्रृङ्गार है। उसकी प्राणप्रिया रानी संसार प्रसिद्ध अनिंद्य सुन्दरी रुक्मिणी है। कालक्रम से उस रानी के पुत्र-रत्न की प्राप्ति हुई।' इतना सनने के बाद चक्रवर्ती ने प्रार्थना की- 'हे भगवन् ! आप प्रासियों को मनोवांछित फल के प्रदाता हैं। हम लोगों की अभिलाषा है कि आप श्रीकृष्ण नारायण के पुत्र प्रद्युम्न का पवित्र चरित्र सुनायें। अतएव आप उसका चरित्र वर्णन करें।' श्रोताओं को प्रार्थना पर श्री सोमन्धर स्वामी ने कहना प्रारम्भ किया___ 'रुक्मिणी प्रसव की छठवीं रात्रि को पुत्र को अङ्क में ले कर शयन कर रही थी। ठीक उसी समय शिशु के पूर्व-मव का शत्रु एक दैत्य उसे हर कर ले गया। दैत्य ने उस अबोध शिश को तक्षक पर्वत की दिश नाम की अटवी में ले जाकर पुराने बैर का प्रतिशोध लेना चाहा। उसने एक विशालकाय शिला के तले उसे दबा दिया। संयोगवश विद्याधरों का राजा कालसंवर अपनी रानी के साथ वहाँ आ पहुँचा। उसने शिला को कम्पायमान देख कर उसे ऊपर को उठाया। उसके नीचे एक नवजात शिश मस्करा रहा था। राजा ने उसे उठा लिया एवं अपनी रानी के साथ विमान में बैठ कर अपनी नगरी को लौट आया। अब उस बालक का वहीं प्रतिपालन हो रहा है। शुक्ल पक्ष के चन्द्रमा की भाति उस किशोर का सर्वांगीण विकास हो रहा है। अब वही प्रद्युम्न के नाम से प्रख्यात है। जब वह सोलहवें वर्ष में पदार्पण करेगा, तो सोलह प्रकार की निधि एवं दो विद्याएँ प्राप्त कर द्वारिका लौट आयेगा। उसे पाकर उसके माता-पिता एवं कुटुम्बीजन अतीव प्रसन्न होंगे / घर जाते समय प्रद्युम्न के मार्ग में जो शुभ शकुन होंगे, वे इस प्रकार हैं रुक्मिणो के उरोजों से स्वतः दुग्ध बहने लगेगा, वन के वृक्ष लहलहा उठेंगे, कमल प्रफुल्लित होंगे, शष्क सरोवर जल से पूर्ण हो जायेंगे, राजमहल के सम्मुख का शुष्क अशोक वृक्ष पुनः पुष्पित हो उठेगा, पुष्पों के Jun Gun Archak Trust