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________________ P.P.Acco लिये उठा कर अपनी हथेली पर रख लिया।' श्रीजिनेन्द्र भगवान की दिव्य-वाणी हुई–'हे राजन् ! भरतक्षेत्र में अभी अवसर्पिणी काल चल रहा है। इसके पश्चात वहाँ पर जिस काल.का आगमन होगा, उसका वर्णन करते हैं-ध्यान देकर सुनो। ____भरतक्षेत्र में उत्सर्पिणी एवं अवसर्पिणी काल क्रम से परिवर्तित होते रहते हैं। इनके छ:-छः अवान्तर काल भी होते हैं / अवसर्पिणी के पूर्व काल में मानव को देह तीन कोस एवं उच्च मायु तीन पल्य प्रमाण को होती है। द्वितीय काल में मानव देह दो कोस की एवं आयु दो पल्य की होती है। तृतीय काल में शरीर एक कोस उच्च एवं आयु एक पल्य की होती है। चतुर्थ काल में अर्थात् युग के आदि में प्रथम तीर्थङ्कर श्रीऋषभनाथ जिनेश्वर हुए थे। उनकी आयु चौरासी लाख वर्ष को थी एवं देह उच्चता 500 धनुष प्रमाण थी। इसके बहुत दीर्घकाल पश्चात् श्री अजितनाथादि मोक्ष-मार्ग के परमोपदेशक 22 तीर्थङ्कर हुए हैं। अब वर्तमान में अवसर्पिणी के चतुर्थ काल का समय है। इस समय भारतवर्ष में हरिवंश की शोमा विस्तारक 22 वें तीर्थङ्कर श्री नेमिनाथ स्वामी ने जन्म लिया है। वर्तमान में वहाँ के मनुष्यों की देहयष्टि 20 धनुष उच्च है / हे राजन् ! यह नारद वही से आया है। चतुर्थ काल की समाप्ति पर जब पञ्चम काल का आगमन होगा, तो वहाँ के मनुष्यों की आयु 200 वर्ष की होगी एवं देह 7 // हाथ प्रमाण उच्च होगी एवं छठवें काल में शरीर केवल हाथ उच्च होगा एव आयु मात्र 16 वर्ष तक की। काल चक्र के अनुसार ये परिवर्तन होते रहते हैं।' 4. भगवान की अमृतमयी वाणी सुन कर चक्रवर्ती ने प्रश्न किया-हे भगवन् ! यह ऐसे कठिन पर्वतों को पार कर विदेहक्षेत्र में कैसे आ पहुँचा एवं यहाँ किस कार्य हेतु आया है ? कृपा कर आप बतलाइए।' चक्रवर्ती के प्रश्नों का समाधान करना आवश्यक था। इसलिये श्री सीमन्धर स्वामी ने द्वादश सभा के प्राणियों को धार्मिक प्रवृत्ति को विस्तार करनेवाली अपनी मधुर वाणी द्वारा प्रश्नों का उत्तर देना प्रारम्भ किया यह नारद जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र से आया है। इसके आने का उद्देश्य नारायण श्रीकृष्ण के पुत्र का अन्वेषण करना है। श्रीकृष्ण से इसकी इतनी प्रगाढ़ मित्रता है कि उनके पुत्र का अपहरण सुन कर इसका चित्त व्याकुल हो रहा है। कई स्थानों पर अन्वेषण करता हा अब मेरे निकट जिज्ञासा के लिए आया है। चक्रवर्ती ने पुनः प्रश्न किया- 'हे भगवन् ! आप ने जिस श्रीकृष्ण का नाम लिया है, वह कौन है ? उसका || Jun Gun Aaradhak
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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