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________________ PPA Gun asun MS | बबशनियों से आप के पाँच शतक पुत्र हैं। यदि यह शिशु उनका दास होकर रहा, तो मुझे घोर मानसिक || कष्ट होगा एवं यह अपमान मुझे सहन न हो सकेगा। मैं अपने जीवन को निष्फल समझने लगेंगी। यदि मैं ने || पूर्व-भव में पुण्य सञ्चित किया होता, तो आज मेरी ही कोख निःसन्तान न रहती। हाय ! मैं बड़ी अभागिनी हूँ। 45 ऐसी स्थिति में किसी अन्य का पुत्र लेकर कैसे सुखी हो सकती हूँ ? वस्तुतः यह कृत्य दुःखदायी ही होगा।' इतना कह कर रानी फूट-फूट कर अश्रुपात करने लगी। कनकमाला को यों विलाप करते देख कर राजा को भी हार्दिक क्लेश हुमा। उसने कहा-'हे देवी! इस प्रकार सन्ताप करने से क्या लाभ ? बल्कि इससे काया कृश हो जायेगी-कमलवत् मुख की शोभा जाती रहेगी। मैं तत्काल इस शिशु को युवराज पद प्रदान करता हूँ।' इतना कह कर राजा कालसंवर ने अपने मुखपान के ताम्बूल से शिशु का राज-तिलक कर दिया मैं हूँ अथवा तू, अन्य कोई कदापि नहीं हो सकता।' तत्पश्चात् राजा ने शिशु को कनकलता के अङ्क में दे दिया। रानी ने प्रसन्नतापूर्वक उसे ग्रहण करते हुए आशीर्वाद दिया। वह शिशु के मस्तक पर हाथ रख कर बोली'हे पुत्र! तू चिरजीवी हो। तुझ से माता-पिता को सुख मिले।' कनकमाला बारम्बार उस अबोध शिशु का चुम्बन करने लगी। इस घटना के उपरान्त विद्याधर कालसंवर एवं विद्याधरी कनकमाला दोनों ने विमान पर बारूढ़ होकर अपने नगर मेघकूट के लिए प्रस्थान किया। नगर में आगमन पर जनता एवं मन्त्रियों ने उनका स्वागत किया। राजा की आज्ञा के अनुसार उत्सव सम्पत्र हुए एवं समारोहपूर्वक राजा का नगर में प्रवेश हुमा / राजमहल में जाकर राजा ने अपने मन्त्रियों को बुला कर कहा- 'हे मन्त्रीगण ! मैं अब एक आश्चर्यजनक घटना का वर्णन कर रहा हूँ। किसी को अब ज्ञात तक नहीं था कि मेरी रानी कनकमाला गर्भवती है। नारियों को मूढगर्भ भी होता है।' राजा के संग अपनी सहमति प्रकट करते हुए मन्त्रियों ने कहा-'ऐसा कई | बार सुनने में आया है / वैद्यक-शास्त्र आदि में भी मूढगर्भ का उल्लेख है। प्रत्यक्ष देखने भी ऐसी घटना हुई है।' || मन्त्रिों की सहमति पा कर राजा को प्रसन्नता हुई। उन्होंने कहा-'मेरी रानी कनकमाला को भी || ऐसी ही मूढगर्भ था। संयोगवश आज वन में हो उसे पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई है। अतएव रानी के लिए शीघ्र प्रसूति-गृह की व्यवस्था करायो। सूतिका बुला कर उसे प्रसूति-कार्य करने के लिए आदेश दो।' मन्त्रियों ने Jun Gun Aaradhak Trust AC
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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