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________________ P.P.ACCurranasunMS. चतुर धाय को बुलवाया एवं प्रसुति-कार्य आरम्भ करवा दिया गया। राजा ने यह भी आज्ञा दी कि नगर को तोरण-ध्वजा-पताकादि से सर्वत्र सुसज्जित किया जाये, जिन-मन्दिरों में उत्सव सम्पन्न हों, याचकों को मनोवांछित दान दिया जाये तथा कारागार के समग्र बन्दी मुक्त कर दिये जायें। राज-चिह्नों के अतिरिक्त | राजकोष की समस्त वस्तुएँ दान में दे दी जायें। राजा के आदेश के अनुसार मन्त्रियों ने विराट महोत्सव का आयोजन किया। ध्वजा-तोरणादि से नगर का श्रृङ्गार हुआ, गुणीजन सम्मानित किये गये। कुटुम्बियों का बादर किया गया, यहाँ तक कि नगर-निवासियों के समस्त कष्ट निवारण हेतु आवश्यक राजकीय-व्यवस्था भी की गई। सब लोग आनन्द मनाने लगे। हे सत्पुरुषों ! पुण्य की महिमा की ओर तो दृष्टि डालो ? पुण्यात्माओं के लिए सर्व-सामग्री का सुलम हो जाना बड़ा सरल है। सारे नगर में उत्सव सम्पन्न हो रहा था। सातवें दिन शिशु के नामकरण के लिए कुटुम्बीजन एकत्रित हुए। उन्होंने उसका नाम 'परान्दमित' (प्रद्युम्नकुमार) अर्थात् शत्रुओं का दमन करनेवाला रक्खा / ___ प्रद्युम्नकुमार की आयु-वृद्धि के साथ-साथ राजा कालसंवर के कुटुम्बीजनों तथा सर्वसाधारण को बहुविधि सन्तोष होता गया। राज्य की समृद्धि में भी वृद्धि होने लगी। प्रद्युम्नकुमार को सब लोग हाथोंहाथ खिलाया करते थे, जैसे-भ्रमर एक पुष्प से दूसरे पुष्प पर जा बैठता है। उसी समय किसी ने प्रश्न कर दिया'बाँझ को तो पुत्र नहीं होता, तब यह बालक कैसे उत्पत्र हो गया ? यह किसी सुनसान वन में रानी को मिला होगा, न जाने किसका पुत्र है ?' उत्तर में अन्य ने कहा-'इससे तुम्हें क्या प्रयोजन ? राजा का आचरण आदर्श होता है / मुझे तो यह बालक पुण्यहीन प्रतीत नहीं होता। यदि ऐसा होता तो जन्म के अवसर पर ऐसा महोत्सव सम्पत्र नहीं होता। जीवन की सारी सुख-सम्पदायें पुण्य-सञ्चय से ही प्राप्त होती हैं। अतएव सत्पुरुषों को चाहिये कि वे सदा काल पुण्य-सञ्चय करते रहें। पुण्य के प्रताप से प्रद्युम्नकुमार केवल कनकमाला का ही नहीं, वरन् कालसंवर की समस्त रानियों का प्रिय पात्र बन गया था। सर्वसाधारण नारी वर्ग तो उसे प्राणों से भी बढ़ कर चाहती थी। यदि पूर्वभव के बैर से दैत्य ने उसके साथ अन्याय किया था, तो यहाँ उसे कनकमाला का अङ्क एवं राज्य-परिवार में पालन का सुख प्राप्त हुआ। इसका पुण्य-सञ्चय के अतिरिक्त अन्य कोई कारण नहीं। अतएव भव्य जीवों को सदा परोपकार में प्रवृत्त करानेवाले जैनधर्म को ही धारण करना Jun Gun Andra Trust
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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