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________________ खि मात्र का। बाँबादी विमान एकाधक म (क) हो गया। वह विलमात्र भी जबर न हो। सका। कासकर को बड़ी क्यिा हुई। सोचने लगा कि ऐसा ज्यों हुमा ? क्या किसी ने अक्रोधक प्रयुक्त किया है अश्वा भूतल पर में कोई मुनीन्द्र बासीन हैं या जिन मन्दिर में कोई अतिशययुक्त प्रतिमा विद्यमान है। किरी प्राणी को कष्ट तो नहीं है या कोई मेरा शत्रु प्रतिशोध हेतु सन्नद्ध है ? निरीक्षण के उद्देश्य से राजा अपनी पत्नी के संग विमान से नीचे उतरा। पर्वत पर पहुँचने पर ही उसने खदिरा की भयानक अटवी देखी। वहाँ पर एक बावन हस्त प्रमाण विशाल शिला थी जो पूर्व वर्णित शिशु के निवास की वायु से प्रकम्पित हो रही थी। इतनी विशाल शिला को इस प्रकार दोलायमान देख कर राजा कालसंवर को महती आश्चर्य हुभा। वह असमअस में पड़ गया एवं यह निर्णय न कर सका कि वस्तु-स्थिति क्या है ? उसने कभी इसनो विशाल शिला को डोलते नहीं देखा था। फिर भी कौतूहलवश अपने समस्त बल तथा विद्या से उसने शिला को उठाया। शिला के हटने पर राजा कालसंवर ने देखा कि उसके तले एक सुन्दर शिशु मुस्करा रहा है। वह अत्यन्त चञ्चल था, उसके घुघराले केश तथा पग-हस्त भी मचल रहे थे। उसकी मुठ्ठियाँ बंधी हुई थी, नेत्र की भामा पद्मपुष्प के सदृश थी। उसकी देहयष्टि को कान्ति एवं मुख की सुन्दरता पूर्णिमा के चन्द्रमा को भी लजा रही थी। उसकी कोमल भुजायें शुभ लक्षणों से चिह्नित थों। पूर्व-भव के सञ्चित पुण्य को प्रकट करनेवाले, शत्रु-दल को परास्त करनेवाले, मनोहर एवं सर्वगुण-सम्पत्र उस शिशु को राजा कालसंवर ने देखा। उसने उसे मङ्क में उठा लिया एवं विचार किया कि यह अवश्य ही उच्च कुल में उत्पन्न होनेवाला कोई भाग्यशालो शिशु प्रतीत होता है। कुछ विचार करने के उपरान्त कालसंवर ने अपनी पत्नी से कहा-'हे देवी! तुझे तो अब तक कोई सन्तान नहीं हुईं,पर पुत्र की उत्कट लालसा भी है। अतएव तुम्हारे सौभाग्य से ही यह सर्वगुण- च सम्पत्र शिशु हमें प्राप्त हुआ है। अतएव अब इसे ग्रहण करो।' अपने पति के प्रीतिकर वचन सुन कर रानी ने शिशु को जङ्क में लेने के लिए अपनी भुजायें फैलायों। किन्तु राजा जब उसे शिशु को देने लगा, तो उसने अपने कर सङ्कुचित कर लिए। राजा को घोर आश्चर्य हुआ। उसने जिज्ञासा हेतु प्रश्न किया--'हे प्रिये ! तुम | ने अपने कर क्यों सङ्कुचित कर लिए ?' रानी के नेत्रों में अश्रु को धारा उमड़ पड़ी, उसका हृदय कष्ट से भर || आया। उसने करबद्ध निवेदन किया- 'हे प्राणनाथ ! जब आप जिज्ञासा करते हैं, तो मैं आप से कहती हूँ।। Jun Gun Archak Trust 44
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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