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________________ P.P Ad Gurransuri MS श्रीकृष्ण के यहाँ पुत्ररत्नों की उत्पत्ति से द्वारिकापुरी में अनेक उत्सव सम्पन्न होने लगे-मित्र एवं बन्धुवर्ग का सम्मान किया जाने लगा, याचक इच्छानुसार दान पाने लगे. मेंट में कुलीन स्त्रियों को बहुमूल्य वस्त्र भट दिये गये। नगर में बन्दनवार तथा जिन-मन्दिरों में पताकायें लगाई गयीं। यहाँ तक कि घर-घर उत्सव मनाये जाने लगे। ठीक ही है. यदि राजा के घर पुत्र उत्पन्न हो. तो फिर प्रजा को उत्सव मनाना ही चाहिये। जैसे शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ एवं अरहनाथ स्वामी के जन्म-कल्याणक के समय देवों ने महोत्सव सम्पन्न किया था, // वैसे ही श्रीकृष्णनारायण के पुत्रों के जन्म में नगरवासियों ने महान उत्सव मनाया। पर पुत्र के उत्पत्र होने से रुक्मिणी में श्रीकृष्ण को अनुरक्ति द्विगुणित हो गयी। वे याचकों को इच्छानुसार दान देते थे एवं गुरुजनों का सम्मान कर सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगे। इस प्रकार उनके महल में पञ्च-दिवसीय जन्म महोत्सव सम्पन्न हुए। पर छठवें दिन क्या विस्मय हुआ उसका वर्णन अधोलिखित है उस दिन सूर्यास्त हुआ। कारण यह था कि कदाचित् उसे ( सूर्य को ) ज्ञात था कि आज की रात्रि में श्रीकृष्ण के पुत्र का अपहरण होने वाला है। तब उसने विचार किया कि इससे नारायण तथा उनके स्वजनों को जो अवर्णनीय दुःख पहँचेगा. वह उससे नहीं देखा जायेगा। अतएव वह (सर्य) अस्त हो गया। सत्य ही है, सत्पुरुष लोग अपने नेत्रों से पर (अन्य ) का दुःख नहीं देख सकते। सूर्यास्त के पश्चात् कमलिनी भी संकुचित हो गई। चतुर्दिक अन्धकार का साम्राज्य हो गया. चक्रवाकी शब्द करने लगी, कमलिनी पर भारी के झुण्ड ऐसे गिरने लगे जिससे प्रतीत होता था कि कमलिनी-रूपी नारी पति रूपी सूर्य के वियोग में अश्रुपात कर रहो हो। अपने पति से वियोग की आशङ्का से चक्रवाकी बारम्बार उसका चुम्बन करती है एवं मूच्छित हो जाती है, आसन्न विरह के कारण उसे सूर्य पर तीव्र क्रोध आता है। सूर्य के वियोग में (निशा) को भी विचित्र दशा हो गयी। जिस प्रकार पति को मृत्यु के उपरांत नारियाँ वस्त्राभूषणों से श्रृङ्गार कर के सती होने जाती हैं, उसी प्रकार निशा का भाँचल (गगन) रङ्ग-बिरंगे तारों से सशोभित हो गया। दिशारूपी गणिका ने भी अपने पति के अस्त हो जाने पर अन्धकार के साथ रमण करने के लिए विचित्र वस्त्र धारण कर लिये। समस्त पृथ्वी पर अन्धकार का साम्राज्य हो गया। ऊँचे-नीचे सब स्थान समान प्रतीत होने लगे। जैसे अन्यायो एवं अधर्मी राजा के राज्य में सत्पुरुषों एवं दुर्जनों से समान व्यवहार किया जाता है, वैसे ही उस दिन की Jun Gun Andhak
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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