________________ | हुए, जिन्हें श्रीकृष्ण ने आनन्दपूर्वक सम्पादित कर उन्हें सन्तुष्ट किया। ____ गर्भकाल के जब नव मास पूर्ण हो गये; तब पञ्चाङ्ग शुद्धि के अनुसार शुभ तिथि, शुभ नक्षत्र, शुभ करण एवं शुभ योग में रुक्मिणी के पुत्र उत्पन्न हुआ। सर्वत्र अपार प्रसन्नता छा गई। रुक्मिणो को कितना आनन्द हुआ होगा, इसकी तो कल्पना भी नहीं की जा सकती। कुटुम्बी एवं बन्धुजनों ने श्रीकृष्ण को बधाईयाँ भेजा। रुक्मिणी ने भी अपने दूतों द्वारा श्रीकृष्ण को बधाई का सन्देशा भिजवाया। जब रुक्मिणी के दूत श्रीकृष्ण के महल में पहुंचे, तब वे निद्रा-मग्न थे। दूत श्रीकृष्ण के चरणों के समीप नतशिर खड़े रह कर उनके उठने की प्रतीक्षा करने लगे। इतने में सत्यमामा के दूत भी बधाई देने आ पहुँचे। उन्होंने विचारा कि उनकी स्वामिनी तो पटरानी है, अतः वे क्यों चरणों के निकट खड़े हों। फलतः वे सिरहाने खड़े हो गये। जब श्रीकृष्ण की निद्रा भङ्ग हुई,तो उनके समक्ष खड़े हुए रुक्मिणो की इती ने प्रसन्नता के साथ बधाई दो-'हे नराधिप। आप चिरकाल तक राज्य करें। रानी रुक्मिणी को पुत्र-रत्न की प्राप्ति हुई है। आप सदा उसके साथ राज्य-सुख का अनुभव करते रहें।' पुत्र जन्म को बधाई देनेवाले दूतों के प्रिय शब्द सुन कर श्रीकृष्णनारायण अत्यन्त हर्षित हुए। उन्होंने राज्य-चिह्न के अतिरिक्त समस्त आभूषण उपहार में दे दिये एवं संग-संग यह भी आज्ञा दी कि मन्त्रीगण को बुला लाओ। दूतों ने मन्त्रियों को जाकर राजाज्ञा की सूचना दी। वे आये एवं श्रीकृष्ण को प्रणाम कर सामने बैठ गये। श्रीकृष्णनारायण ने मन्त्रियों को पुत्र उत्पन्न होने का आनन्द सन्देश सुनाया। उन्होंने मन्त्रियों से हर्षपूर्वक कहा कि इस पुण्य-योग में याचकों को मुक्तहस्त दान दो, कारागार से अपराधी मुक्त कर दिये जायें, श्रीजिनेन्द्र भगवान के मन्दिरों में भक्तिभाव से पूजा का विधान हो एवं द्वारिकापुरी का श्रृङ्गार कर उत्सव-समारोह सम्पन्न किये जाएं। इस प्रकार मन्त्रियों को आदेश दे कर जब वे सिरहाने की ओर मुके, तो उन्हें पटरानी एवं विद्याधर पुत्री सत्यभामा के दूतों ने बधाई दी कि हे महाराज ! हमारी महारानी सत्यभामा के पुत्र उत्पन्न हुआ है। तब तो श्रीकृष्ण की प्रसन्नता का / पारावार ही नहीं रहा। उन्होंने आज्ञा दी कि इन्हें भी पुरस्कार में आभूषणादि प्रदान किये जायें। कर्म के क्षयोपशम के अनुसार अभिमान की वृद्धि होती है, पर उसका विनाश अवश्यम्भावी है / देखिये, तीन खण्ड | पृथ्वी का अधिपति दशानन (रावण) भी अपने अभिमान से सकुटुम्ब विनष्ट हो गया। Jun Gun Aara 36