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________________ P.P.AC.GurmanasunMS. | रात्रि की स्थिति हो गयी। उस भयानक अन्धकार में सब ओर कृष्ण वर्ण की कालिमा ही दृष्टिगोचर होने लगो। आकाश, भूमि, पर्वत अथवा दिशा आदि का कोई ज्ञान-सन्धान नहीं हो रहा था। नदी, वन आदि की सीमायें विलुप्तप्राय थों। सारी वस्तुएँ मर्यादाहीन हो गयी थीं। किंतु इस घोर अन्धकार में एकमात्र सहायक प्रज्वलित नन्हें दीपक वैसे ही शोभा देने लगे, जैसे मलिन लोगों के गुट में रहने पर भी सत्पात्र दुर्गुणों में लिप्त नहीं होते। वे सदा पङ्क (कीचड़) में पद्मवत शोभायमान रहते हैं। रात्रि में रुक्मिणी अपने प्रिय पुत्र को लेकर प्रसूति गृह में शयन कर रही थी। समीप में मङ्गल गीत गाने एवं नृत्य करनेवाली सेविकायें शयन कर रही थीं। सुरक्षा के लिए महल के चारों ओर प्रहरी सनद्ध थे। श्रीकृष्णनारायण चिन्तामुक्त होकर किसी अन्य महल में निद्रामग्न थे। उनकी रक्षा के लिए भी वीर अङ्गरक्षक नियुक्त थे। प्रफुल्लवदना रुक्मिणी एक हजार सेविकाओं के मध्य अपने प्रिय पुत्र का कोमल मुख निहार कर सो गई थी। रात्रि में उत्सव सम्पन्न होने के पश्चात् उसे गहरी निद्रा आ गयी थी। उसी समय एक घोर कष्टदायक उपद्रव हुआ, जिसकी पृष्ठभूमि यह है एक बार दुर्बुद्धि से प्रेरित होकर मोहवश राजा मधु ने अपने सामन्त राजा हेमरथ की पत्नी का हरण कर लिया था। पत्नी के वियोग में हेमरथ राज-काज त्याग कर निर्जन वन में भ्रमण करने लगा। वह विक्षिप्तसा यत्र-तत्र भटकता रहा। उसने अन्य मतावलम्बियों के बहकावे में जाकर पञ्चाग्नि तप का अनुष्ठान किया, जिसके प्रभाव से मृत्यु के उपरान्त वह दैत्य हुआ। एक दिन वह दैत्य अपने विमान पर आरूढ़ होकर गगन में विहार करने के उद्देश्य से निकला। संयोग से उड़ता हुआ वह विमान रुक्मिणी के महल के ऊपर आया। विमान वायुवेग से सञ्चरण कर रहा था, किन्तु जब वह रुक्मिणी के महल के ऊपर बाया तो स्वयमेव | स्तम्भित हो गया। विमान के रुकते हो उस दैत्य को आशङ्का हुई कि किसो दुर्बुद्धि ने उसके विमान को कोलित कर दिया है अथवा निम्नभाग में कोई प्राचीन अतिशय तेजवान जिन-प्रतिमा है ? उसे संशय हा कि बापत्तिग्रस्त कोई शत्रु है या मित्र अथवा चरमशरोरो देहधारी? अवश्य ही कोई कारण है, अन्यथा उसके विमान की गति अवरुद्ध नहीं हो सकती थी। पृथ्वी पर मला ऐसा कौन है, जिसमें उसके गतिमान विमान का पशबवरुद्ध करने का साहस हो ? वह उससे दण्ड पाये बिना त्रिभुवन में भी जीवित नहीं रह सकता। जिस Jun Gun Aaradha Trust
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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