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________________ PPA Gunvanasti MS के स्मरण से उसका हृदय प्रफुल्लित हो गया। उसने विचार किया कि कितना अचूक लक्ष्य है। इससे मेरा दुःख दूर होगा एवं रुक्मिणी की चिंता बढ़ेगी। पहिले अवश्य मेरे पुत्र उत्पन्न होगा। रुक्मिणी के भी हो सकता है एवं नहीं भी, कारण मैं रुक्मिणी से अवस्था एवं देहयष्टि के आकार में बड़ी हूँ। अनुमान से भी सिद्ध है | 37 कि मैं ही प्रथम पुत्र उत्पन्न करूँगी। अतएव यथाशीघ्र इस योजना को कार्यान्वित कर देना चाहिये / इसमें श्रीकृष्ण एवं बलदेव की साक्षी भी मावश्यक है। अपने इस विचार को सफलीभूत करने के लिए सत्यभामा ने अपनी दासी को बुलवाया एवं उसे सब बातें समझा कर रुक्मिणी के यहाँ भेजा। ___दासी डरते हुए रुक्मिणी के महल में जा पहुँची। उसने नम्रतापूर्वक नमस्कार कर कहा- 'हे देवी! महादेवी सत्यभामा ने एक सन्देशा देने के लिए मुझे यहाँ भेजा है, किन्तु वे कटु वचन कहने में मुझे सङ्कोच हो रहा है।' भीष्मराज की पुत्री ने कहा- 'हे दासो ! तू सन्देशा कहने में क्यों डरतो है ? सन्देशवाहक का कार्य ही होता है कि वे अपने स्वामी की आज्ञानुसार सन्देश पहुँचाये। मैं तुझे अभय-वचन देवी हूँ, तू निर्भय होकर कह।' तब दासी ने निवेदन किया- 'हे देवी! विद्याधर सुकेतु की पुत्री सत्यभामा ने आप को सूचना दी है कि सम्भवतः पुण्य के उदय से प्रथम आप (रुक्मिणी) को पुत्र की प्राप्ति होगी, तो बड़ी धूमधाम से उसका विवाह किया जायेगा एवं मैं ( सत्यभामा) लग्न के समय उसके पग तले अपने शोश के केश रसुंगी। इसके उपरान्त ही बारात प्रस्थान करेगी। किंतु यदि पहिले मुझे पुत्र की प्राप्ति होगी, तो आपको भी मेरी तरह उसके विवाह लग्न के समय अपने मस्तक के केश उसके चरणों के तले रखने होंगे।' दासी द्वारा यह सन्देश सुन कर रुक्मिणो ने मुस्करा कर कहा-'हे दासो! तुम्हारी स्वामिनी का प्रस्ताव मुझे स्वीकार है।' तदुपरान्त सत्यभामा एवं रुक्मिणी ने अपनी-अपनी दासियों को श्रीकृष्ण एबं बलदेव की इस प्रस्ताव पर सहमति प्राप्त करने के लिए सभा में भेजा। किसी ने सत्य ही कहा है कि अभिमान से सर्वस्व विनष्ट हो जाता है। सभा में दोनों दासियों के मुख से समस्त घटना-चक्र का आद्योपान्त विवरण एवं उनके प्रण सुने गये। उन पर श्रीकृष्ण, बलदेव एवं यादव वीरों की साक्षियाँ ले ली गयीं। तदनन्तर स्वाभिमानिनी सत्यभामा एवं रूपसी रुक्मिणी सुखपूर्वक समय व्यतीत करने लगी। 2 रुक्मिणी एक दिन पुष्पों के सुकोमल पर्यङ्क पर शयन कर रही थी। उसने रात्रि के तृतीय प्रहर में Jun A rt
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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