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________________ P.P.Ad Gunun MS होता है। यदि बाबी सम्बन्ध को शधित समझते हों, सो कृपया अपनी स्वीकृति प्रदान करें।' ' पत्र को सुबकार प्रोब को बड़ी प्रचाता हुई। उन्होंने भरी सभा में घोषणा की- मैं दुर्योधन से - वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करने को प्रस्तुत हूँ। सत्पुरुषों से योग्य सम्बन्ध करने में कोई दोष नहीं।' इस || 36 प्रकार प्रसन्नतापूर्वक श्रीकृष्ण ने दूत का उपयुक्त सम्मान किया। उन्होंने उस दूत के साथ अपना दुत भी दर्योधन के पास भेजा। श्रीकृष्ण के दूस ने जा कर दुर्योधन को नमस्कार किया एवं बार्तालाप के पश्चात् विवाह-सम्बन्ध का निश्चय हो गया। इससे दुर्योधन को जो प्रसन्नता हुई, वह वर्णनातीत थी। उसने दूत को पुरस्कार में वस्त्रालङ्कार देकर विदा किया। दूत जब लौट कर स्वदेश आया, तब उसने श्रीकृष्ण से सब समाचार कह मनाया। इन दूतों के बादान-प्रदान के सम्वाद कारुक्मिणी को ज्ञान नहीं था, केवल सत्यभामा | ही जानती थी, अन्ध रानियों को भी यह घटना ज्ञात नहीं हुई। __लक्ष्मीपति श्रीकृष्णनारायण ने अपनी प्राण-वल्लमा रुक्मिणी के साथ अनेक वर्षों तक सुख भोगा। सारी प्रजा का उन पर अगाध स्नेह था। सहस्रों नृपति उनको माज्ञा का पालन करते थे। उन्हें अपनी मनोकामना की सिद्धि होने से प्रसन्नता हो रही थी। यह सब पुण्य का ही प्रताप था। पुण्य से ही रुक्मिणी की प्राप्ति, शिशुपाल की पराजय तथा द्वारिका का राज्य प्राप्त हुआ। इससे कहना चाहिये कि सत्पुरुषों को पुण्य के प्रभाव से ही। सब वस्तुएँ प्राप्त होती हैं, अतएव सत्पुरुषों को उचित है कि वे जिनेन्द्र की आज्ञा का पालन व पुण्य का सञ्चय / / करें। पुण्य के परिणाम चन्द्रमा की तरह मनोहर एवं उज्ज्वल होते हैं। जो जीव लौकिक एवं देव पर्याय में | सुख प्राप्त करना चाहते हों, उन्हें सदा पुण्य का उपार्जन करना चाहिये। पञ्चम सर्ग जब रुक्मिणी द्वारा सत्यभामा का मान-भङ्ग हो गया, तो वह अत्यन्त दुःखी हुई। वह आहे भर-भर कर। मूर्खतापूर्ण उपाय सोचने लगी। उसने विचार किया-'काश! कोई ऐसा उपाय हो, जिससे रुक्मिणी को | भीषण कष्ट का सामना करना पड़े। उसे ऐसा कष्ट का अनुभव हो, जिसे वह सहन करने में असमर्थ हो जाए।' | एक दिन सत्यभामा को अकस्मात् दुर्योधन के दूत को घटना का स्मरण हो आया। विवाह-सम्बन्धी वचनों ! Twitter Jon Gun Aaradhak Trust
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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