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________________ P.PAC Gunun MS श्रीकृष्ण (नारायण) तथा बलदेव (बलभद्र) का स्वागत किया। श्रीकृष्ण ने भी बागन्तुकों का विधिवत् सत्कार किया। वे रुक्मिणी एवं बलदेव के साथ रथ पर आरूढ़ होकर द्वारिका की ओर अग्रसर हुए। जब रथ ने नगर में प्रवेश किया, तो नगर-निवासी बड़ी उत्कण्ठा से वधू को देखने के लिए आये। नगर को नारियों ने || 28 कौतुकप्रद विनोद प्रस्तुत किये। वर-वधू के दर्शन के उमङ्ग में उन्हें अपने तन-मन की भी सुधि न रही। उस दृश्य का यहाँ संक्षेप में वर्णन किया जाता है वधू को देखने की उत्कण्ठा में एक नारी चूड़ाबन्धन को कटि में एवं मेखला को मस्तक पर बाँध कर आ गयी थी। दूसरी नेत्र में कुंकुम एवं गालों पर कज्जल लगा कर आ गयी थी। कोई-कोई नारी तो अपने शीश एवं उरोज आँचल से ढंकना ही भूल गई थी। एक नारी अपने बालक को दुग्धपान करा रही थी, उसने जब सुना कि श्रीकृष्ण रुक्मिणो को लेकर मा गये हैं, तब वह अबोध शिशु को एकाकी छोड़ कर चली आई। कुछ केश सँवारना ही भूल गयीं, कुछ अपने पति को भोजन करते हुए ही छोड़ कर चली आईं। दो नारियों भीड़ में इस प्रकार घुसती हुई जा रही थी कि उनमें से एक का हार टूट गया, दूसरी का वस्त्र विछिन्न हो गया। एक नारी जल लाने के लिए गयी थी, उसने मार्ग में वर-वधू पर मुक्ताफल का क्षेपण किया। नारियों की ऐसी विह्वल दशा देख कर श्रीकृष्ण विनोद में मुस्करा रहे थे। किसी ने टिप्पणी की-'कितना मनोहर दृश्य है।' उसी समय गर्ग जातिवालों ने कहा-'श्रीकृष्णनारायण नवीन पत्नी लाये हैं। पुण्य का प्रभाव तो देखो, कितना सुन्दर संयोग हुआ है।' एक नारी ने कहा-'यह कुलीन सुन्दरी धन्य है, जिसे कामदेव को परास्त करनेवाले श्रीकृष्ण जैसे पति मिले।' दुसरी नारी तत्काल बोल उठी-'वस्तुतः यह सर्वोत्तम युगल हैं। हरि तथा कामदेव को भी ये लज्जित कर रहे हैं।' तीसरी नारी ने कहा-'सत्य है। इस सुन्दरी ने पूर्वभव में दान, व्रत, ध्यान, तीर्थ-यात्रा, जप, तप आदि किये हैं; फलतः ऐसा सुयोग्य वर मिला।' इतने में एक चतुर बोल उठी-'यथार्थ में इसने दान, पुण्य, व्रतादि का आचरण कर महती पुण्य-सञ्चय किया है, जिससे श्रीकृष्ण जैसे तीन खण्ड पृथ्वी के नाथ को पति रूप में प्राप्त किया। यह बड़ी पुण्यवती है; क्योंकि पुण्यहीन के मनोरथ स्वप्न में भी सफल नहीं होते।' राज-मार्ग से गमन करते हुए श्रीकृष्ण तथा रुक्मिणी ने नारियों के मुख से ऐसे अनेक उद्गार सुने। अनेक भव्य जिन-मन्दिरों से सुशोभित द्वारिका नगरी को देख कर Jun Gun Aaradhak Trust 28
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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