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________________ (कामदेव) को प्रतिमा देखी। उसने तभी प्रणाम कर यह प्रतिज्ञा ली थी कि यदि नृपति शिशुपाल उसके पति बनेंगे, तो वह लग्न के दिन अनङ्ग-पूजा करेगी। बड़े सौभाग्य से ऐसा सुअवसर प्राप्त हुआ है। आज सुयोग्य पति की प्राप्ति के हर्ष में रुक्मिणी अपनी प्रतिज्ञा-पालन के लिए निकली है / वह प्रतिमा के समक्ष भावी पति की दीर्घ-आयु की कामना करेगी, क्योंकि नारी पति एवं पुत्र की कुशलता चाहती ही है। अब इसमें बाधा उपस्थिति करना कदापि वांछनीय नहीं होगा।' प्रहरियों ने समस्त कथोपकथन आद्योपान्त अपने स्वामी से जा कहा। फलतः उसकी धारणा में आमूल परिवर्तन हो गया। उसके हृदय में रुक्मिणी के प्रति तीव्र अनुराग उत्पन्न हुआ। वह उसके प्रेम की कामना करने लगा। उसने आज्ञा दी कि किसी प्रकार बाधा न दो एवं ससम्मान रुक्मिणो को वन में जाने दो। प्रहरियों ने आज्ञा का पालन किया एवं रुक्मिणी इस प्रकार प्रमद उद्यान में निर्विघ्न जा पहुंची। उस समय बुजा ने रुक्मिणी से कहा- 'हे पुत्री ! जिस निमित्त तेरा यहाँ आगमन हुआ है, वह तेरा देव यहीं स्थापित है। तू एकाकी जाकर उसकी अभ्यर्थना कर।' अपने समूह से बिछुड़ी हुई रुक्मिणी चञ्चल चित्त से इधर-उधर देखने लगी। वृक्षों की मोट से श्रीकृष्ण || ने कोमलाङ्गी, शुभलक्षण, कामनयनी, चन्द्रमुखी, पिकबैनी रुक्मिणी को देखा। उसकी देहयष्टि कृशांगी थी। सारङ्गी-सी सुरीली भुजायें मालती पुष्प सदृश कोमल, उरोज युगल पुष्ट एवं उत्तुङ्ग, गौरवर्ण एवं सूक्ष्म कटि थी। स्थूल नितम्ब-मण्डल दिशा रूपी गज सदृश थे। उसके पग कामदेव के निवास स्थान जान पड़ते थे। उसकी जंघायें कदली वृक्ष सदृश थी, कमलवत् चरणों में नुपूर बज रहे थे। उसकी मंथर गति हंसिनी-सी थी। रुक्मिणी ने उच्च-स्वर में पुकारा–'यदि मेरे पुण्योदय से द्वारिकानाथ का आगमन हुआ हो, तो शीघ्र दर्शन देने की कृपा करें।' आह्वान सुनते ही श्रीकृष्ण एवं बलदेव ओट से बाहर निकले। अपने भावी पति को देख कर रुक्मिणी लाज से अवनत हो गयी। स्वभावतः वह अंगुष्ठ से भूमि खरोंचने की वृथा चेष्टा करने लगी। श्रीकृष्ण ने कहा-'हे रूपसी! यहाँ द्वारिका का स्वामी उपस्थित है, तू प्रसत्रतापूर्वक उसे देख।' इस वाक्य को सुन कर रुक्मिणी संकोच से नतमस्तक हो गयी। शिशुपाल के सैन्य-बल के भय से उसका सर्वाङ्ग अनिष्ट की आशङ्का में प्रकम्पित हो रहा था। बलदेव ने तत्काल अश्वों को रथ में सजाया। उन्होंने कहा-'स्वभावतः नारी सलज्जा होती है। फिर कुमारी कन्याओं का तो कहना ही क्या ? अतः हे श्रीकृष्ण। अब तुम क्या देख / Jun Gun Aaradha
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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