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________________ PPA S MS का मुझे यथार्थ ज्ञान कराओ।' शिशुपाल ने मुस्करा कर उत्तर दिया- 'हे मुनिराज ! आप की कृपा से जो | कुछ हो रहा है, वह मङ्गल एवं नीतियुक्त है।' नारद ने कृत्रिम स्नेह से कहा- 'मैं तुम्हारी लग्नपत्री देखना चाहता हूँ।' तब राजा ने उन्हें अपनी लग्नपत्री दिलवा दी। कुछ काल तक वे लग्नपत्री बाँचते रहे। तत्पश्चात् कलहप्रिय नारद चिन्तित हो गये। उन्हें इस प्रकार उदास देख कर शिशुपाल ने प्रश्न किया—'हे स्वामिन् ! भाप इतने चिन्तित क्यों हैं ?' उत्तर में नारद ने कहा- 'हे राजन् ! लग्नपत्री में आपको कायक्लेश होना बदा है। अतः आप को पूर्ण सावधानी से कुण्डनपुर जाना चाहिये।' इतना कह कर नारद शिशुपाल के हृदय में गहन आशंका उत्पन्न कर वहाँ से चल पड़े। आशंकित शिशुपाल ने भयभीत होकर एक विराट सेना संगठित की एवं विभिन्न वाहनों के द्वारा उसने कुण्डनपुर के लिए प्रस्थान किया। वहाँ पहुँच कर शिशुपाल की सेना ने समस्त कुण्डनपुर को इस प्रकार घेर लिया, मानो सुमेरु पर्वत को तारामण्डल ने घेर लिया हो। जिस समय शिशपाल की सेना नगर को घेर रही थी, उसी समय 'प्रमद' उद्यान में श्रीकृष्ण एवं बलदेव पधारे थे। यद्यपि रुक्मिणी पूर्व से ही चिन्तित थी, किन्तु जब उसने सुना कि शिशुपाल की सेना द्वारा नगर घेर लिया गया है, तो उसका सन्ताप अत्यधिक बढ़ गया। उसने सोचा कि अब वह श्रीकृष्ण के दर्शन हेतु 'प्रमद' उद्यान में कैसे जा सकेगी? उसे उदास देखकर उसकीबुमा ने जिज्ञासा की-'हे पुत्री! चिन्तित क्यों हो रही हो!' उसने उत्तर दिया-'अब मैं उद्यान में कैसे जा सकती हूँ ?' बुआ ने आश्वासन देते हुए कहा-'इसमें दःखी होने की कोई आवश्यकता नहीं। मैं ऐसा उद्योग करूँगी कि तू निर्विघ्र प्रमद उद्यान में पहँच जाए।' बुबा ने एक युक्ति सोची। वस्तुतः समय पर नारियों की बुद्धि तीव्र हो जाती है / उसने नारियों के एक समह में रुक्मिणी को सम्मिलित कर दिया, वे सब मङ्गल गीत गाती हईं नगर के बाहर निकलीं। शिशपाल के / प्रहरियों ने उन्हें रोका। उन्होंने अपने स्वामी को सूचना दी कि रुक्मिणी अपनी सहेलियों के संग प्रमद वन की ओर जा रही है। शिशुपाल ने अभिमान भरे शब्दों में आज्ञा दो-'जिस भांति भी हो रुक्मिणी को वन में प्रवेश से रोको।' सिपाहियों ने उस नारी-समूह को रोकते हुए कहा कि वे वन में नहीं जा सकती, ऐसी निषेधाज्ञा उनके स्वामी की है। तब रुक्मिणी की बुआ ने उत्तर दिया- 'रुक्मिणी कामदेव का दर्शन करने के लिए वचनबद्ध है / एक दिन वह सहेलियों के साथ वन में क्रीड़ा करने गयी थी, तब वहाँ उसने अनड Jun Gun Aaradhak -22
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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