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________________ RECENTRANCE 22 है। झना कह कर दूत ने अपने प्रस्थान की तैय्यारी की। श्रीकृष्ण ने उसे वस्त्राभूषणों से सम्मानित किया। श्रीकृष्ण का चित्त तो रुक्मिणी में अनुरक्त था हो। दूत के गमनोपरान्त वे दोनों भ्राता परस्पर कार्य-सिद्धि हेतु युक्ति सोचने में संलग्न हुए। उन्होंने विचार किया कि यह समस्त वृत्तान्त किसी भी प्रकार सत्यभामा को ज्ञात न हो, क्योंकि वह विद्याधर की पुत्री है। सम्भवतः विद्या-बल से किसी प्रकार का विघ्न उपस्थित कर दे। उसी रात्रि में ही कुण्डनपुर हेतु प्रस्थान का निश्चय हो गया। इस अभिप्राय से दोनों भ्राताओं ने रात्रि के अन्तिम प्रहर में कबच धारण कर छद्मवेश में नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों से सुशोभित होकर द्रुतगामी २थ द्वारा कुण्डनपुर के लिए प्रस्थान किया। श्रीकृष्ण का चित्त तो रुक्मिणी में आसक्त था ही। उनके लिए धैर्य-धारण के अतिरिक्त अन्य कोई सम्बल नहीं था। प्रत्येक कला में निपुस दोनों भ्राता ( श्रीकृष्ण-बलदेव) द्रुतगामी रथ द्वारा 'प्रमद' उद्यान के समीप जा पहुँचे / कुण्डनपुर को रमणीकता को देख कर श्रीकृष्ण के हृदय में भांति-भांति के संकल्प-विकल्प होने लगे। वे मम-ही-मन कहने लगे कि न जाने मेरे भाग्य में क्या अङ्कित है ? फिर भी धैर्य धारण कर वे दोनों भ्राता अपनी मनोरथ सिद्धि हेतु सत्पर हुई। चतुर्थ सर्ग उस प्रमद उद्यान की शोभा अपूर्व थी। वह विविध प्रकार के वृक्षों एवं सुगन्धित पुष्पों से सुशोभित नन्दन-कानन (इन्द्र का उपवन ) के सदृश शोभित हो रहा था। ऐसा मान होता था कि स्वयं नन्दन-कानन ही कुण्डनपुर की रमणीयता के दर्शन हेतु पृथ्वी पर उतर जाया हो। श्रीकृष्ण एवं बलदेव ने उस नयामिराम उपवन में प्रवेश किया। उन्होंने शोक-हर्ता अशोक जाति के वृक्ष को देखा / उसके ऊपर एक ध्वजा फहरा रही थी एवं उसकी छाया में कामदेव की मनोज्ञ प्रतिमा स्थापित थी, जिसके दर्शन मात्र से श्रीकृष्ण को सन्तोष हुला। रथ के अश्वों को मुक्त कर दिया गया। दोनों भ्राताओं को रुक्मिसी के दर्शन की तीव्र उत्कंठा थी। इसी अभिप्राय से वे सघन वृक्षों को ओट में छिप कर बैठ गए। किंतु इसके पूर्व ही एक अन्य आनन्ददाधिनी घटना हो मयी नारद द्वारिका से प्रस्थान कर सीधे चन्देरी (चैदिनमसे) जा पहुँचे। वहाँ के नृपति शिशुपाल मै उक्का योग्य सत्कार किया। कुशल प्रश्न के पश्चात् नारद ने जिज्ञासा को–'हे शिशुपाल वर्तमान काल के घटनाचक्र HD Jun Gun PY Trust
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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