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________________ P.P.AC.Gurranasuri MS. राज भीष्म की कन्या तथा खुवराज रुप्यकुमार की भगिनी है। इतना कह कर बुबा ने रुक्मिणी से नाश्द। मुनि के चरणों में प्रणाम करवाया। नारद मुनि ने आशीर्वाद देते हुए कहा कि द्वारिकापुरी के अधिपति तथा हरिवंश के श्रृङ्गार महाराज श्रीकृष्णनारायण कीतू पटरानी बनेगी। नारद मुनि के वचनों से रुक्मिणी संशय में पड़ गयी। नारद मुनि तो वहाँ से प्रस्थान कर गये, पर इसके अनन्तर रुक्मिणी सदैव चिन्तित रहने लगी। उसे न दिवस में क्षुधा लगती है, न रात्रि में निद्रा माती है। चन्द्रमा की चाँदनी उसे विष सदृश प्रतीत होती है पवं चन्दन का लेप बनि का-सा दाह उत्पन्न करता है। वह आप पर मन-प्राण से आसक्त है। इसमें कोई संशय नहीं है। वह भाप के नाम की माला फेर कर ही जीवित है। अतएव जाप से निवेदन है कि आप इस सम्बन्ध में यथोचित प्रबन्ध करें। आप शुभ कार्यों के कर्ता हैं, बतः राजकन्या रुक्मिणी के कष्ट की निवृत्ति भाब भाप के ही हाथ में है।' श्रीकृष्स एवं बलदेव दूत के कथन को ध्यानपूर्वक सुनते रहे / तदनन्तर श्रीकृष्ण ने प्रेमपूर्वक सम्बोधित करते हुए दूत से जिज्ञासा की-'यह तो बतलाजो कि यदि मैं वहाँ जाऊँ, तो ठहरने के लिए कौन-सा स्थान उत्तम है ? मैं कैसे रुक्मिणी के समीप जा सकँगा अथवा वह मुझ से कैसे मिल सकेगी? विस्तार से कहो।' तब दूत ने नम्रतापूर्वक उत्तर दिया- 'हे महाराज ! आप यथाशीघ्र कुण्डनपुर चलें। वहाँ लता-वृक्षादिकों से सुशोभित 'प्रमद' नामक एक उद्यान है / उद्यान में एक अशोक वृक्ष के तले कामदेव की मति है. जिसे अपनी मनोकामना की पूर्ति के निमित्त रुक्मिणी ने स्थापित किया है पहिचान के लिए उस पर मनोहर पताका है। आप वहाँ आ कर उस वृक्ष के नीचे छिप कर बैठे। जब रुक्मिणी कामदेव की पूजा के निमित्त वहाँ आयेगी, तो आप उससे मिल सकेंगे। आप निश्चिन्त रहें। अब वह आप के अतिरिक्त अन्य किसी का वरण नहीं कर सकती। जिस प्रकार सिंहनी श्रृगाल के शावक से रमरण करना स्वीकार नहीं करेगी, उसी प्रकार रुक्मिणी के लिए अन्य पुरुष को अङ्गीकार करना अब स्वप्न में भो सम्भव नहीं। उसने आपका ही व्रत धारण कर लिया है। वह रूपसी उद्यान में पधारेगी एवं माप को ढूँढ़ेगी। यदि वहाँ आप के दर्शन न हो सके. तो फिर उसके लिए अपने प्राणत्याग कर देना भी असम्भव नहों। ऐसा होने से आप को नारी हत्या का महान पातक लगेगा। अब तो आपको तत्काल प्रस्थान कर देना चाहिये। निःसङ्कोच प्रमद वन में पधारें,यही निवेदन Jun Gunara Trust
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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