SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रहे हो / तत्काल रथ में उठा कर उसे बैठा ली। ऐसा प्रतीत होता है कि तू त्रिया-बरिन से अब तक अनभिज्ञ हो है।' तब श्रीकृष्ण ने रथ में चढ़ाने के बहाने कपट से रुक्मिणी का प्रगाढ़ आलिंगन किया। जब रुक्मिणी एच में बैठ गयी, तब श्रीकृष्ण एवं बलदेव भी बारूद हए / बलदेव ने बड़ी शीघ्रता से रथ || 24 हकिा एवं श्रीकृष्णा ने वीरतापूर्ण शङ्ख-ध्वनि की। उन्होंने गम्भीर गर्जना कर कहा- 'मैं श्रीकृष्ण हठपूर्वक रुक्मिणी का हरण कर रहा हूँ। यदि शिशुपाल की सैना अथवा कुण्डनपुर में किसी में शक्ति हो, तो वे रुक्मिणी को मुक्त करा लें।' श्रीकृष्ण ने शिशुपाल को सम्बोधित करते हुए कहा - 'हे नृपति ! तुम्हारे जीवन को अब धिक्कार है,क्योंकि मैं तुम्हारी वाग्दत्ता का हरस कर रहा हूँ हे भीष्मराज! आप की पुत्री को मैं द्वारिकाधीश श्रीकृष्ण हरण कर लिए जा रहा हूँ। हे रूप्यकुमार! तुम्हारी भगिनी का हरण हो गया है। तुम्हारी शूरता, बल एवं अभिमान समाप्त हो गये क्या ? तुम में साहस हो तो आओ, उसे मुक्त कराओ। यदि तुम अपनी भगिनी को नहीं मुक्त करा सकते, तो तुम्हारा साहस किस काम का ? यदि रुक्मिणी मेरे साथ चली गयी, तो तुम्हारा जीवित रहना व्यर्थ है।' कुछ आगे बढ़ कर श्रीकृष्ण ने समागत अन्य राजाओं को सम्बोधित करते हुए कहा- 'हे राजागण ! बिना मेरे साथ युद्ध किये रुक्मिणी का पुनः मिला सम्भव नहीं है।' इसके पश्चात् श्रीकृष्ण का रथ युद्ध के प्रांगण की ओर अग्रसर हुआ। शिशुपाल की विह्वलता का तो कहना ही क्या ? उसकी सेना में अव्यवस्था फैल गयी। शस्त्रास्त्रों से सुसज्जित उसके सैनिक गरज पड़े'दुष्ट ! चोर ! दस्यु ! इसे शीघ्र बन्दी बनाओ।' भीष्म एवं रूप्यकुमार भी सेना सहित रणक्षेत्र में आ गए। सारी सेनायें 'पकड़ो-पकड़ो' के नारे लगा रही थीं। उन सेनाओं में रथी, गजारोही, अश्वारोही, पदाति वोर अपने सहायकों के संग सम्मिलित थे। जुझारू वाद्यों, गजराजों की चिंघाड़, अश्वों की हिनहिनाहट एवं चारणों को जय-ध्वनि से सम्पूर्ण वातावरण निनादित हो उठा। चारों ओर से घेर रही सेमाओं का श्रीकृष्ण एवं बलदेव ने वीरता से सामना किया। एक ओर विशाल सैन्य समूह एवं दूसरी ओर केवल श्रीकृष्ण-बलदेव को देख कर रुक्मिणी चिन्तित हो उठी। उसने विचार किया कि न जाने उसके भाग्य में क्या अङ्कित है ? उसकी दृष्टि में तो इन दोनों वोरों का विनाश निश्चित दिख रहा था / यदि उसके लिए इनका वध हुआ, तो बड़ा अनर्थ हो जायेगा। उसके निराश नयन अश्रुओं को अविरल वर्षा करने लगे। रुक्मिणो को ऐसी विह्वल दशा Jun Gun Ac 24
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy