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________________ P.PAC G MS बजीव, आस्रव आदि सप्त तत्व कहे गये हैं। इनमें पुण्य एवं पाप संयुक्त कर देने से नव पदार्थ हो जाते हैं। ये ही नव पदार्थ संसार में विख्यात एवं मानने योग्य हैं। जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश एवं काल-ये षट्-द्रव्य होते हैं। इनमें काल के अतिरिक्त अन्य को पंचास्तिकाय कहते हैं। आत्मा भिन्न है एवं काया (देह) | 12 भित्र है, किन्तु यह आत्मा संसार के बन्धन में जकड़ जाती है। इस आवरण से उसकी सत्य-असत्य जानने की शक्ति उसी प्रकार लुप्त हो जाती है। जिस प्रकार राहु एवं केतु के आवरण ( ढंकने) से चन्द्रमा एवं सूर्य की शक्ति क्षीण हो जाती है। लेश्या भी षट् प्रकार वर्णित है। पीत, पद्म एवं शुक्ल-ये शुभ लेश्या हैं तथा श्रीकृष्ण, नील, कापोत-ये अशुभ लेश्या हैं / ये सब लेश्यायें जीवों के विशेष भावों के अनुसार होता हैं। ध्यान चार प्रकार के, मार्गणा चतुर्दश प्रकार की, धर्म दश प्रकार के, अन्तराय एवं बहिरङ्ग के योग से तप के द्वादश प्रकार हैं। भगवान द्वारा धर्म का स्वरूप सुन कर नारायण श्रीकृष्ण ने वेसठ शलाका पुरुषों का चरित्र पूछा। भगवान ने पाँचों कल्याणकों के नाम, स्वर्ग से चय कर आनेवालों के नाम, नगर, माता-पिता, नक्षत्र, वर्ण, ऊँचाई, वंश राज्य-काल, तप, ज्ञान, निर्वाण-स्थान तथा कितने राजाओं के संग उन्होंने दीक्षा ली आदि छियालीस ज्ञातव्य तथ्य प्रत्येक तीर्थङ्कर के विषय में बतलाये। इसके उपरान्त षट्-खण्ड पृथ्वी के अधिपति द्वादश चक्रवर्तियों, नव-नारायणों, नव-प्रतिनारायणों एवं नव-बलभद्रों के नगर, वंश एवं तीर्थङ्करों के तीर्थ-काल में उत्पन्न हुए प्रमुख व्यक्तियों की उत्पत्ति, वृद्धि, निधन आदि विषयों का सम्यक् प्रतिपादन किया। भगवान की अमृतमयी वाणी सुन कर समस्त सभा विमुग्ध हो गयी। फलतः सब लोग वैराग्य की ओर आकर्षित हुए। समवशरण-सभा में श्रीकृष्ण का भ्राता गजकुमार भी उपस्थित था। उसे अकस्मात् वैराग्य उत्पन्न हो गया। तब वह तीर्थङ्कर भगवान से दीक्षित होकर पर्वत के शिखर पर चला गया एवं वहाँ अपना केशलोंच कर ध्यानस्थ हो गया। गजकुमार का सोमशर्मा नाम का क्रोधी श्वसुर था। जब उसे जामाता की दीक्षा का संवाद मिला, तो वह उसके समीप आया। उसने मुनि गजकुमार से घर लौट चलने के लिए अनुरोध किया। किन्तु जब उसके आग्रह से मुनि प्रभावित नहीं हुए, तो उसने उनके शीश पर अग्निमयी दिग्धका (कुण्डी) रख दी, जिससे मुनि की काया जलने लगी। फिर भी वे अपने ध्यान से रश्चमात्र भी च्युत नहीं हुए, फलस्वरूप उन्हें Jun Gun Aarador 382
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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