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________________ 182 भगवान की वन्दना के लिए नारायण श्रीकृष्ण भी गये। उन्होंने नगर में घोषणा करवा दी कि श्री जिनेन्द्र भगवान का गिरनार पर्वत पर आगमन हुआ है। प्रद्युम्नकुमार, शम्भुकुमार, भानुकुमार आदि समग्र यदुवंशी राजा तथा सत्यभामा आदि रानियाँ भी समवशरण में आईं। __ जिस समय द्वारावती से नारायण श्रीकृष्ण गिरनार पर्वत को चले, उस समय की शोभा अवर्णनीय है। गजराजों के मद जल से भूतल प्लावित हो रहा था। अश्वों की टापों से उड़ती हुई धूल चारों दिशाओं में व्याप्त हो गयी। बन्दीजनों की विरद्-ध्वनि से एवं तुरही के शब्दों से एक विचित्र कोलाहल मचा हुआ था। नारायण श्रीकृष्ण ने जब दूर ही से गिरनार पर्वत का दर्शन किया, तब पर्वत की शोभा अत्यन्त आकर्षक एवं दर्शनीय लगी। कोयलों की कूक एवं फल-पुष्पों के भार से लदे वृक्ष ऐसे प्रतीत होते थे, मानो भगवान को नमस्कार करने के लिए अवनत हों / नारायण श्रीकृष्ण ने दूर ही से अपने गज, अश्व, रथ तथा राजसी-चिह्न त्याग दिये। वे अन्य राजाओं को साथ लेकर समवशरण में जा पहुँचे। वह समवशरण मानस्तम्भों, सरोवरों, नाट्यशालाओं एवं पुष्प-मालाओं से सुशोभित हो रहा था। उच्च सिंहासन पर बैठे हुए भगवान की सब लोगों ने तीन प्रदक्षिणायें दीं। उनकी विधिपूर्वक पूजा कर नारायण श्रीकृष्ण निम्नरूपेण स्तवन करने लगे___'हे भगवन् ! आप समस्त चराचर के विभु हैं / आप विज्ञानी, दयाशील एवं तृष्णा रहित हैं / आप का सर्वाङ्ग क्षमा, श्री, ही, घृति एवं कीर्ति से समुज्ज्वल है। विद्याधर, भूमिगोचरी आदि सदैव आप की वन्दना करते हैं। हे विभो ! हम में इतनी शक्ति कहाँ है कि आप के चरणों की भी वन्दना कर सकें ? फिर भी अपनी स्वार्थसिद्धि के हेतु हम वन्दना कर रहे हैं। आप ने संसार-बन्धन का परित्याग कर केवलज्ञान प्राप्त किया। है। आप ने राजमती आदि प्रियजनों तथा राज्यादि भोगों का परित्याग कर काम-क्रोधादि शत्रुओं पर विजय प्राप्त की है। आप विश्व को प्रकाशित करनेवाले सूर्य एवं निष्कलङ्क चन्द्र सदृश भासित हैं / आप को निर्मल आत्म-ज्ञान प्राप्त है / आप अज्ञानान्धकार को नष्ट करनेवाले एवं संसाररूपी सागर से पार उतारनेवाले हैं।। हे भगवन् ! हे त्रैलोक्य के गुरु ! हम आप को बारम्बार नमस्कार करते हैं।' ___इस प्रकार स्तुति कर नारायण श्रीकृष्ण ने भगवान श्री नेमिनाथ से धर्म का स्वरूप पूछा। तब भगवान ने बतलाया कि धर्म के दो स्वरूप हैं-एक तपस्वियों के लिए एवं दूसरा गृहस्थों के लिए। जैन-धर्म में जीव, Juncuniowhakirust
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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