SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 183
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 180 P.P.Ad Gurransuri MS प्रान्त में विहार करते हुए भद्दिलपुर में जा पहुंचे। वहाँ पर अलका के घर में वसुदेव के उन छः ज्येष्ठ पुत्रों का पालन हो रहा था, जिन्हें कंस के भय से देव रख आये थे। वे सब भगवान के समवशरण में पधारे। भगवान के उपदेश से उन्हें वैराग्य हो गया। बत्तीस पत्नियों के रहते हुए भी उन्होंने जिन-दीक्षा ले ली। वे षष्ठ भ्रातागण पठन-पाठन, ध्यान-योग, पारणा-प्रोषध, आदि कार्य साथ-साथ ही करते थे। श्री जिन भगवान पुनः रैवतक पर्वत पर पहुँचे। श्रीकृष्ण आदि यदुवंशी तथा सत्यभामा आदि नारियाँ भी समवशरण में जा पहुँची। भगवान को नमस्कार कर सब लोग यथास्थान बैठे। तब भगवान ने धर्म के स्वरूप का निरूपण किया। अवसर पाकर महारानी देवकी ने भगवान से प्रार्थना की—'हे भगवन् ! एक घटना से मैं विस्मित हो रही हूँ। आज मेरे घर दो मुनि आहार के लिए पधारे थे। उन्होंने विधिपूर्वक कई बार आहार लिया। मैं ने उन्हें वात्सल्य वश तीनों बार भोजन करा दिया। क्या दिगम्बर मुनि लोग दिन में कई बार आहार लेते हैं ?' उत्तर में भगवान ने कहा- 'दिगम्बर मुनि बारम्बार भोजन नहीं करते। वे छहों तुम्हारे ही पुत्र हैं, उन्हें जन्म के समय ले जा कर देवों ने उनकी रक्षा की थी। भगवान की अमृतमयी वाणो सुन कर देवकी को बड़ी प्रसन्नता हुई। उसका समस्त संशय जाता रहा। तब माता तथा षट्-पुत्रों का परस्पर वार्तालाप प्रारम्भ हुआ। श्रीकृष्ण के सगे भ्राताओं के सम्मिलन से सब यादवों को बड़ी प्रसन्नता हुई। श्रीकृष्ण की सत्यभामा आदि पटरानियों ने भी अपने पूर्व-भवों के वृत्तान्त पूछे, जिन्हें सुन कर यादवों को बड़ा सन्तोष हुआ। भगवान पुनः विहार के लिए निकल पड़े। तत्पश्चात् वे सुपात्रों को जिन-दीक्षा देने में तत्पर हुए। ___श्री जिनेन्द्र भगवान (नेमिनाथ) के इस चरित्र में उनके विवाहादि महोत्सवों की चर्चा तथा वैराग्य, दीक्षा, ध्यान, केवलज्ञान, उपदेश, आदि का वर्णन है। जो भव्य-जीव इस निर्मल चरित्र का अध्ययन या श्रवण करते हैं, वे निश्चय ही विद्वान तथा चतुर होते हैं। चतुर्दश सर्ग विभिन्न देशों में विहार करते हुए श्री नेमिनाथ भगवान गिरनार पर्वत पर आ पहुँचे। तीर्थङ्कर के आगमन पर इन्द्र की आज्ञा से कुबेर ने वहाँ समवशरण की रचना की। फिर शीघ्र ही सेवा में इन्द्र उपस्थित हुए। Jun Gun Aaradh 180
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy