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________________ PRAC Gunanasun MS 464 केवलज्ञान प्राप्त हुआ। तत्पश्चात् उन्हें मोक्ष (निर्वाण ) की प्राप्ति हुई। यह सम्वाद समवशरण में उपस्थित देवों को भी मिला, तब वे सब गजकुमार की ओर चले। श्रीकृष्ण ने तत्काल भगवान से प्रश्न किया—'हे प्रभु ! देवगण जय-जयकार करते हुए कहाँ जा रहे हैं ?' भगवान ने बतलाया कि गजकुमार को मोक्ष की प्राप्ति हुई है, अतः ये देव एवं मनुष्य समुदाय वहीं जा रहा है।' सब को महान आश्चर्य हुआ। वे समवशरण में ही गजकुमार को ढूँढ़ने लगे। किन्तु जब भगवान ने समस्त वृत्तान्त सुना दिया, तो वे अत्यन्त प्रभावित हुए। कुछ ने भगवान से जिन-दीक्षा ले ली, कुछ ने अणुव्रत लिए तथा कई व्यक्तियों ने गहस्थों के षट-कर्म पालन के व्रत लिये। भगवान की वाणी से सभी सन्तुष्ट हुए, कुछ को सम्यक्त्व की प्राप्ति हुई। नारायण श्रीकृष्ण को भी संसार की असारता समझ में आ गई। उन्होंने सोचा कि जितने त्रेसठ शलाका. पुरुष हुए थे, वे सब विनाश को प्राप्त हो गये। इसी प्रकार बलदेव ने भी अपने चित्त की जिज्ञासा भगवान से पूछी। वे कहने लगे—'हे नाथ ! जो वस्तु अनादि है, अकृत्रिम है, उसके विनाश को तो कल्पना ही नहीं है। पर जो पदार्थ उत्पन्न हुए हैं, उनका विनाश तो सम्भव है / अतएव कृपया यह बतलाइये कि इस द्वारिका का कब विनाश होगा एवं श्रीकृष्ण क्या सदैव जीवित रहेगा ?' भगवान ने कहा-'द्वादश (बारह) वर्ष पश्चात द्वीपायन मनि के शाप के प्रकोप से द्वारिका नष्ट हो जायेगी तथा उनके क्रोध का मूल कारण मद्य होगा। श्रीकृष्ण कारण जरत्कुमार होगा। वह आखेट के लिए वन में जाकर शर-सन्धान करेगा तथा उसी शर पगमा५नगमगर Jun.G भविष्य में द्वारिका के नष्ट होने तथा श्रीकृष्ण की मृत्यु की बात सुन कर कितने ही नगर-निवासियों ने द्वारिका त्याग दी। कुछ लोग सर्वज्ञ देव की शरण में जाकर दीक्षित हो गये। जरत्कुमार भी यह विचार कर निर्जन वन में चला गया कि जब सर्वजन पूजित श्रीकृष्ण उसके द्वारा निहत होंगे, तो उसका वहाँ नहीं रहना ही उपयक्त होगा। तत्पश्चात् श्रीकृष्ण ने द्वारिका नष्ट होने के भय से नगर में घोषणा करवा दी कि मद्यपान करनेवाले व्यक्ति मद्य का सर्वथा त्याग कर दें। साथ ही यह भी प्रकट किया कि उनके सम्बन्धी, स्त्री-पुत्र आदि जो भी जिन-दीक्षा लेना चाहें, तो उन पर कोई निषेध या प्रतिबन्ध नहीं है। द्वारिकापुरी के भावी विनाश से व्याकुल सर्य ने अपने को अस्ताचल में छिपा लिया। कमलिनी मुख 283
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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