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________________ 153 P.P.AC.GuryathasunMS. ... ब्राह्मण के कटु-वाक्य सुन कर बलभद्र उसे पकड़ कर नगर के द्वार तक ले गये। किन्तु जब वे लौट कर आये, तब देखा कि ब्राह्मण जहाँ पहिले सोया था, वहीं पड़ा हुआ है। अब तो उनका क्रोध प्रचण्ड दावानल बन गया। वे कहने लगे—'ऐसा प्रतीत होता है कि अनुज-वधू मेरे ऊपर ही अपनी माया का प्रयोग करने पर तत्पर हो गयी है। वह रुक्मिणी के स्थान पर डाकिनी तो नहीं हो गयी?' बलभद्र को इस प्रकार व्याकुल एवं बड़बड़ाते हुए देख कर कुमार ने अपनी माता से प्रश्न किया—'यह शरवोर पुरुष कौन है ? इसकी चेष्टाओं से प्रतीत होता है कि यह संग्राम का अभिलाषी है।' रुक्मिणी ने बतलाया- 'ये यादवों के पूज्य परम पराक्रमी तुम्हारे काका बलदेव हैं। इस समय इनके समान दुर्धर वीर पृथ्वी पर नहीं है।' प्रद्युम्न ने बड़ी सरलता से जिज्ञासा की- 'हे माता! ये किसके साथ द्वन्द्व-युद्ध करने की इच्छा रखते हैं ?' रुक्मिणी ने कहा'इन्हें सिंह के साथ युद्ध करने में सर्वाधिक प्रसन्नता होती है। तब कुमार ने बलभद्र के साथ द्वन्द्व-युद्ध करने की इच्छा प्रकट की। माता के निषेध करने पर भी अपनी माया समेट कर ब्राह्मण का लोप कर दिया एवं स्वयं सिंह का रूप धारण कर लिया। प्रचण्ड आकार एवं भयङ्कर मुद्रा के सिंह को देख कर बलभद्र के विस्मय का पारावार न रहा। वह सिंह राजमहल के भीतर से ही गरजने लगा। अब तो उन्हें दृढ़ विश्वास हो गया कि यह सब रुक्मिणी की ही माया है। बलभद्र कोधित तो थे ही, वे सिंह से जा भिड़े। उन दोनों में दीर्घकाल तक द्वन्द्व-युद्ध होता रहा। अन्त में सिंह वेशधारी कुमार ने बलभद्र को धराशायी कर दिया एवं अपना वास्तविक रूप धारण कर माता के समीप चला आया। ____ महा-पराक्रमी पुत्र से रुक्मिणी कहने लगी- 'हे पुत्र ! अब तक तू ने नारद मुनि की कुशल-क्षेम नहीं सनाथी। बतला कि वे कहाँ हैं ?' प्रद्युम्न ने उत्तर दिया—'वे मेरे साथ ही विमान पर आये हैं / इस समय वे आकाश में स्थिर विमान पर आरूढ़ हैं। उनके साथ आप की पुत्रवधू भी है।' पुत्रवधू के सम्बन्ध में सन कर रुक्मिणी को घोर आश्चर्य हुआ। उसने जिज्ञासा की—'तुझे उदधिकुमारी कहाँ मिली?' प्रद्युम्न कहने लगा'राजा दुर्योधन ने जिस उदधिकुमारी को मेरे लिए भेजा था, उसे मैं ने भील का रूप धारण कर मार्ग में ही हस्तगत कर लिया। वह भी नारद मुनि के साथ विमान पर आरूढ़ है।' इसके पश्चात भानुकुमार का गर्व भाट सत्यभामा के उद्यान का विनाश, आदि लीलायें उसने रुक्मिणी से कह सुनायीं। समस्त वृत्तान्त ज्ञात होने Jun Guna 153 20
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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