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________________ P.P.A.Gunanasuri MS रुदन मत कर। मैं यह सहन नहीं कर सकती।' इतना सनमा था कि वह अपने वास्तविक स्वरूप में आ गया। | उसकी वाकृति युवा पुरुष की हो गई। उस समय रुक्मिणो ने पुत्र का कपोल-चुम्बन कर कितना सुख | प्राप्त किया, यह वर्णनातीत है। इधर माता-पुत्र में वार्तालाप चल रहा था, उधर बलदेव के भेजे हुए दूत रुक्मिणी || के महल तक मा पहुँचे। उन्हें शस्त्र लेकर बाते देख कर कुमार ने माता से जिज्ञासा की- 'यह कौन हैं एवं किसलिये आ रहे हैं ?' रुक्मिणी ने बतलाया- 'ये बलदेवजी के सेवक हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने मुझ पर क्रोधित हो कर दण्ड देने के लिए इन्हें भेजा है। शायद सत्यभामा को दासियों की दुर्गति से ही वे क्रोधित हुए हैं. क्योंकि वह प्रतिज्ञा उन्हीं को साक्षी दे कर हुई थी।' कुमार ने कहा - 'हे माता! / चिन्ता मत करो। मैं जाता हूँ एवं अपने कर्तव्य का पालन करूँगा।' रुक्मिणी नहीं चाहती थी कि उसका प्रिय पुत्र बड़े-बड़े शूरवीरों से उलझे / किन्तु स्वाभिमानी कुमार को यह कब सह्य था ? उसने अपने विद्या का स्मरण किया एवं महल के सम्मुख को वीथि (गली) में जाकर एक स्थूलकाय ब्राह्मण का रूप धारण कर लिया। वह स्थूलकाय ब्राह्मण बलदेव के सुभटों के आने के पूर्व ही रुक्मिणी के महल में प्रवेश-पथ को अवरुद्ध कर भूमि पर पड़ रहा। जब वे सुभट आये तो उनमें से एक के अतिरिक्त शेष सभी स्तम्भित (कीलित) हो गये। उस एक ने जाकर बलदेव को सूचना दी। तब वे अत्यधिक क्रोधित हुए। उन्होंने कुपित होकर कहा'क्या रुक्मिणी विद्याधरी हो गयी है ? शायद मन्त्र-बल से हो श्रीकृष्ण उसके वश में हैं / अब मैं चल कर उसके मन्त्रों की परीक्षा करता हूँ !' बलदेव क्रुद्ध होकर रुक्मिणो के महल की ओर अग्रसर हुए। वीथि में वही स्थूलकाय ब्राह्मण भूमि पर लेटा हुमा मिला। उन्होंने नम्रतापूर्वक कहा- 'हे द्विज श्रेष्ठ ! मैं आवश्यक कार्य से जा रहा हूँ। कृपा कर आप मार्ग प्रदान करें।' ब्राह्मण कहने लगा-'हे क्षत्रिय श्रेष्ठ ! मैं सत्यभामा के यहाँ से भोजन कर के लौटा हूँ। प्रथम तो मेरी काया ही स्थूल, तदुपरान्त भोजन भी गरिष्ठ था। इसलिये आप अन्य मार्ग से चले जायें, तो उत्तम हो।' बलदेव कुपित हो गये। उन्होंने कहा - 'अरे अधम ! मुझे आवश्यक कार्य है एवं मैं इसी पथ से जाऊँगा। तू दक्षिणा का अन्न खाकर मेरा मार्ग अवरुद्ध करता है ?' तब ब्राह्मण ने भी कहा-'अरे मंदबुद्धि! मुझे व्यर्थ क्यों छेड़ता है ? यदि तुझे इतनो शीघ्रता ही है, तो मेरे ऊपर से लांघ कर चला जा।' Jun Gun Aaradh
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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