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________________ 151 P.PAC Gunnan MS में आ गये। उस समय रुक्मिणो को विश्वास हो गया कि यह क्षुल्लक ही विद्याधर के घर में पालित उसका अपहत पुत्र है। उसने कुमार से कहा- 'हे पुत्र ! अब तू माता के समक्ष कौतुक मत कर। तू अपनी माया समेट कर प्रकट हो जा। तू समस्त विद्याओं का नायक है / मैं ने तुझे बुलाने के लिए हो नारद मुनि से प्रार्थना की। थी। माता की स्नेहपूर्ण उक्ति सुन कर कुमार ने कहा- 'हे माता! मैं नारद मुनि के साथ ही आया हूँ। किन्तु मुझ जैसे कुरूप पुत्र से आप को कौन-सी सिद्धि प्राप्त होगी? वस्तुतः आप को जगत् के समक्ष लज्जित ही होना पड़ेगा। इसलिये मुझे अनुमति दें कि मैं कहों अन्यत्र प्रस्थान कर जाऊँ।' किन्तु रुक्मिणी अधीर हो उठी। उसने कहा- 'हे पुत्र ! कुरूप होते हुए भी तुझे मैं कहीं नहीं जाने दूँगो।' - कुमार ने देखा कि यदि वह प्रगट न हुआ तो, माता को अधीरता उत्तरोत्तर बढ़ती ही जायेगी। इसलिये उसने तत्काल हो अपना सर्वाङ्ग सुन्दर रूप धारण किया। कान्तिपूर्ण देहयष्टि, चन्द्रमा के सदृश मुख तथा धारा प्रवाहित होने लगी। विद्याविभूषित पुत्र को कान्ति को देख कर रुक्मिणी कहने लगी- 'हे पुत्र ! मैं अमागिनी तेरी शैशवावस्था न देख पायी। राजा कालसम्बर को रानी कनकमाला धन्य है, जिसने तेरा मनोहरी बाल्यकाल देखा एवं पालन कर तुझे इतना बड़ा किया। मैं अत्यन्त ममागिनी ठहरी, जो नव मास गर्भधारण कर के भी पुत्र का बाल्यकाल देखने का सौभाग्य प्राप्त न कर सको। मैं किसे दोष दूं? यह सब मेरे भाग्य (प्रारब्ध) का ही फल है।' माता का उत्कट वात्सल्य देख कर कुमार अबोध शिशु बन गया। वह बालकोचित लीलाएँ करता हमा भूमि पर सरकने लगा। माता बड़ी प्रसन्न हुई। वह झट से अङ्क में उठा कर उसे दुग्ध-पान कराने लगी। क्रीड़ा चतुर बालक धीरे-धीरे घुटने के बल से चलने लगा। उसकी पैजनियों की 'रुन-मुन' ध्वनि तथा उसकी तोतली बोली से रुक्मिणी का चित्त प्रफुल्लित हो उठा। वह कभी धूल में खेलता एवं कभी माता की ग्रीवा से IPPR सदन करने लगा। उसे विलाप करते हुए देख कर रुक्मिणी अत्यन्त दुःखित हुई। उसने कहा-'हे पुत्र /
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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