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________________ पर श्रद्धा हो चली थी। इस प्रकार रुक्मिणी का गुणगान करते हुए वे सब उसके महल से बाहर निकले। उनकी विकृत आकृति देख कर मार्ग में दर्शक हँसते थे। पर वे दासियाँ हर्ष से नृत्य करती हुईं सत्यभामा के महल में जा पहुँचीं। वे स्वामिनी से निवेदन करने लगी कि रुक्मिणी अत्यन्त सुशीला एवं सत्यभाषिणी है; | 150 उसने प्रसत्रतापूर्वक अपनो शिखा कटवा ली। नापित एवं दासियों को विकृत आकृति में देख कर सत्यभामा को महान आश्चर्य हुआ। उसने जिज्ञासा की- अच्छा! यह तो बतलाओ कि तुम्हारी नासिका एवं कर्ण किसने | काट लिये ?' सत्यभामा की ऐसी अशुभ-सूचक बातें सुन कर नापित तथा समस्त दासियाँ अपने नासिकाकर्ण टटोलने लगे। जब उन्हें ज्ञात हुआ कि दोनों अङ्ग कट गए हैं, तो वे सङ्कोच से व्याकुल हो गये। अब उन्हें बड़ी वेदना होने लगी। उनकी दुर्दशा देख कर सत्यभामा बाग-बबूला हो गई। उसने अपने नेत्र रक्तवर्णी कर के प्रश्न किया-'यह निन्दनीय काण्ड किस के द्वारा हुआ ? मैं तो समझतो थी कि रुक्मिणी ने प्रसन्नता से अपने केश लेने दिये होंगे, किन्तु वहाँ तो मेरे सेवकों का ही अङ्गभङ्गकिया गया है। यह निश्चित है कि भृत्य के पराभव से स्वामी भी परास्त समझा जाता है। अवश्य ही यह कृत्य विवेकहीन श्रीकृष्ण (गोपाल) ने किया होगा। बिना उनकी सहमति के रुक्मिणी का ऐसा साहस कदापि नहीं हो सकता था। यदि उसे केश देना स्वीकार नहीं था, तो प्रतिज्ञा से मुकर जाती।' इस प्रकार क्रोधरूपी दावानल बनी सत्यभामा अपने पार्षदों से कहने लगी-'आप लोग जाकर समस्त वृत्तान्त श्रीकृष्ण की राजसभा में बलदेवजी को सुनायें।' सत्यभामा की आज्ञा के अनुसार उसके पार्षद नापित एवं दासियों को लेकर नारायण श्रीकृष्ण की सभा में गये। जब श्रीकृष्ण की दृष्टि सत्यभामा की कनकटो एवं नकटो दासियों पर पड़ी, तो वे अट्टहास कर उठे। पार्षदों ने सभा में उपस्थित होकर बलदेव से समस्त वृत्तान्त कह सुनाया। श्रीकृष्ण ने जिज्ञासा की कि इनके नासिका, कर्ण एवं केश आदि कैसे काट लिए गये ? श्रीकृष्ण का कथन सुन कर बलदेव बड़े क्रोधित हुए। उन्होंने कहा-'यह प्रतिज्ञा सम्पूर्ण यादवों की साक्षी देकर हुई थी। यदि इस प्रकार का उपद्रव रुक्मिणी करती है, तो मैं उसका समस्त अभिमान क्षण भर में विनष्ट कर दूंगा।' उन्होंने अपने सेवकों को आज्ञा दी कि वे जाकर रुक्मिणी का महल लूट लें। सत्यभामा की दासियों के चले जाने के पश्चात् कुमार कंचुकी का रूप बदल कर पुनः क्षुल्लक के वेश 150
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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