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________________ PAPA Gurrainasun MS पर रुक्मिणी बड़ी प्रसन्न हुई। उसने आतुरतापूर्वक कहा-'हे पुत्र ! मुझे नारद मुनि के दर्शन की उत्कट लालसा है। उन्हें सादर यथाशीघ्र मेरे समोप लाओ।' प्रद्युम्न कहने लगा- 'हे माता! उन्हें तो बुला दूंगा, | किन्तु अभी तक मैं अपने कुटुम्बीजनों से नहीं मिल सका हूँ। उन लोगों से मिलने के पश्चात् ही नारद मुनि को ले आऊँगा।' रुक्मिणी ने बतलाया - 'यादवों एवं पाण्डवों की सभा में तुम्हारे पिता (श्रीकृष्ण ) विराजमान होंगे, उन्हें जाकर प्रणाम करो।' वह कहने लगा- 'हे माता ! उत्तम कुल में उत्पन्न होनेवाले का यह नियम नहीं कि वह स्वयं अपने कुल आदि का परिचय दे। अतएव मैं कैसे कह सकँगा कि मैं आप का पुत्र हूँ। इससे तो यही उत्तम होगा कि पहिले मैं उन लोगों को अपना पराक्रम दिखला दूं, तत्पश्चात् परिचय दूं।' रुक्मिणी भयभीत हो गयी। उसने अपने लाडले पुत्र से कहा- 'हे प्रिय पुत्र ! यादवगण बड़े धनुर्धर हैं। उन्हें अनेक भीषण युद्धों में विजयश्री प्राप्त हुई है। अतएव उनसे युद्ध करना कदापि उचित नहीं होगा।' किन्तु कुमार कहने लगे—'हे माता ! मैं देखना चाहता हूँ कि केवल भगवान नेमिनाथ के अतिरिक्त अन्य यादव कितने बलवान हैं ? पर मैं आप से एक कार्य करवाना चाहता हूँ। आप मेरे सङ्ग अपनी पुत्रवधू के समीप चलें, वह विमान में नारद मुनि के सङ्ग बैठी है। उसको आपकी छत्रछाया में सौंप कर मैं अपनी इच्छानुसार कार्य करूँगा।' रुक्मिणी भी असमअस में पड़ गयी।' उसने सोचा- 'यदि मैं बिना नारायण श्रीकृष्ण की आज्ञा के पुत्र के साथ जाती हूँ, तो पतिव्रत से विचलित होती हूँ, एवं यदि नहीं जाती हूँ, तो पुत्र असन्तुष्ट होता है। सम्भव है, वह पुनः विद्याधरों के देश में न लौट जाए / इसलिये पुत्र की इच्छापूर्ति करना ही श्रेयस्कर होगा।' रुक्मिणी की अनुमति मिलने पर कुमार उन्हें आकाश में ले गया। उस समय रुक्मिणी के आभूषणों की छटा से समस्त दिशायें सुवर्णमयी हो गयीं।। तत्पश्चात् कौतुकी प्रद्युम्न ने एक विचित्र लीला की। अपने विद्याबल से रचित कृत्रिम रुक्मिणी का कर (हाथ) थामे यह यादवों की सभा में आ गया। उसने श्रीकृष्ण एवं बलदेव को सम्बोधित करते हुए कहा'यहाँ उपस्थित समस्त यादव एवं पाण्डव वीरों! यद्यपि आप लोगों ने दुर्द्धर संग्रामों में विजय प्राप्त की है, तथापि आज एक विद्याधर का पुत्र, अर्थात् मैं, भीष्म की पुत्री एवं श्रीकृष्ण की प्रिया साध्वी रुक्मिणी को हरण कर लिए जा रहा हूँ। जिसके लिए बलदेव एवं श्रीकृष्ण ने निरीह शिशुपाल का वध किया, उसे आज / Jun Gun Aaradhat 154
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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