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________________ PR.AC.Gurranasun MS. की समस्त चञ्चलता तिरोहित हो गयी। वह शान्त हो कर वृद्ध वणिक के समीप खड़ा हो गया। फलस्वरूप वह वद्ध वणिक अद्रहास करने लगा। उसने कहा-'हे राजकुमार! अश्वारोहण में तो आपकी कीर्ति चतुर्दिक फैली हुई थी। उसे सन कर ही मैं आपके हेतु यह अश्व-रत्न लाया था। किन्त भाप परीक्षा में सर्वथा असफल | 137 रहे। अब मुझे ज्ञात हो गया कि आपको अश्वारोहण का लेशमात्र भी ज्ञान नहीं है। वैसे भी जब आप सामान्य अश्व-सञ्चालन में अयोग्य सिद्ध हैं, तो राज्य वैभव का उपभोग भी नहीं कर सकते। अतः आप को किसी से अश्व-सञ्चालन की कला सीखनी चाहिये।' वृद्ध वणिक की गर्वोक्ति सुन कर वहाँ उपस्थित जन-समुदाय परिहास में हँस पड़ा। वृद्ध ने मी ताली बजा कर अट्टहास किया। भानुकुमार क्रोध से तमतमा उठा। वह बोला -' मूर्ख ! तेरा सर्वाङ्ग तो जर्जर एवं शिथिल है। क्या तू इस अश्व का भारोहण कर सकता है ? यदि नहीं, तो अन्य का परिहास क्यों करता है ?' उस वृद्ध ने कहा-'हे कुमार! यद्यपि मुझ में अश्व-सञ्चालन की सामर्थ्य अब नहीं रहो, फिर भी यदि आप के सुभट मुझे उठा कर अश्व की पीठ कर आरूढ़ करा सकें. तो अपना कौशल दिखलाऊँगा। मैं अपनी अश्व-कला में आपके यशस्वी पिताश्री तक को पराजित कर सकता हूँ।' , वृद्ध वणिक की दर्प युक्त वाणो सुन कर भानुकुमार ने अपने सेवकों को माज्ञा दो कि वे उस वृद्ध को उठा कर अश्वपर आरुढ़ करा दें, ताकि उसके अश्व-सञ्चालन का परीक्षण किया जा सके। किन्तु जब वे सुभट वृद्ध के समीप गये एवं उसे उठाने लगे, तो उसने माया के बल से अपना देह-मार अत्यधिक बढ़ा लिया। जर्जर देहधारी उस वृद्ध ने अपनी दन्तपंक्ति एवं शिखा से ही अनेक सुभटों को धराशायी कर दिया। उसके कौतुक से परास्त हो कर शूरवीर भूमि पर लुंठित होने लगे। उनकी यह दुर्दशा देख कर वृद्ध ने एक अन्य कौतुक किया। वह स्वयं ही रुदन करने लगा-'इन दुष्टों ने मुझे पटक दिया है। मुझे बड़ी व्यथा हो रही है। अब मैं अश्व-सञ्चालन का कौशल कैसे प्रदर्शित करूँ ?' पुनः भानुकुमार ने अपने शूरवीर अनुचरों को मादेश दिया कि इस वृद्ध को येन-केन-प्रकारेण अश्व पर आरूढ़ करा दो। अब की बार भी वहो दशा हुई एवं पुनः वृद्ध प्रलाप करने लगा। तत्पश्चात नारायण-पुत्र भानुकमार स्वयं उठा एवं वृद्ध को उठा कर अश्व तक ले गया। उस समय वृद्ध ने अपना देहमार हल्का कर लिया था। किन्तु जब वह अश्व के समीप पहुँच गया, तो अपनी देह को हठात् पूर्ववत् भारी कर दिया, जिससे मानुकुमार भूतल पर गिर पड़ा। भानुकुमार को कुचलते
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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