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________________ |138 हुए वह वृद्धः अश्व पर बारुद हो गया। भानुकुमार को चिढ़ा-चिढ़ा कर वृद्ध (प्रद्युम्न) ने कलापूर्ण मनोज्ञ गति से अश्व सञ्चालित किया। वह अपनी कुशलता से अश्व को लेकर बाकाश में उड़ चला एवं शनैः-शनैः वेग बढ़ाते हुए अदृश्य हो गया। भानुकुमार आदि राज-पुत्र चकित दृष्टि से वृद्ध का कौशल देखते रहे। उनकी समझ में यह रहस्य न आ सका कि वह कोई दैत्य था या विद्याधर ? - इसके पश्चात् प्रद्युम्न ने सत्यभामा का मनोहर उद्यान देखा ! उसने कर्णपिशाची विद्या से उद्यान का परिचय पूछा। विद्या ने बतलाया कि वह महारानो सत्यभामा का सुरम्य उद्यान है। उस समय प्रद्युम्न ने षोडश वर्षीय युवक का स्वरूप बनाया। उसने पांच-सात दुर्बल अश्वों को ले जा कर उद्यान के रक्षकों से निवेदन किया कि वे कृपा कर कुछ समय तक उसके इन दुर्बल अश्वों को उस उद्यान में चरने दें, जिससे उन्हें बेच सके। उद्यान रक्षकों ने कहा- 'तू विक्षिप्त तो नहीं हो गया ? क्या तू जानता भी नहीं है कि यह उद्यान राजकुमार की माता सत्यभामा का है। तुम्हारे जैसे व्यक्ति तो इस उद्यान का दर्शन तक नहीं कर सकते। इस रमणीक उद्यान में केवल मानुकुमार को ही प्रवेश की आज्ञा है।' उनकी निषेधाज्ञा सुन कर प्रद्युम्न ने कहा—'हे प्रहरियों ! मैं ने जो सुना था कि सौराष्ट्र के लोग निष्ठुर चित्त होते हैं, सो यहाँ आ कर प्रत्यक्ष देख भी लिया। किंतु तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिये / मेरे अश्व बड़े आज्ञाकारी हैं। ये पुष्पादिकों का कदापि भक्षण न करेंगे। उद्यान को कृत्रिम नदी के तट पर इन्हें तण चर लेने दो। यदि मेरे कथन का तम्हें विश्वास न हो. तो मेरो यह बहुमूल्य मुद्रिका अपने पास रख लो।' उद्यान रक्षकों ने लोभ में पड़ कर कहा-'अपने अश्वों को नदी के समीप ही चरा लो। पर स्मरण रहे कि ये फल-पुष्पादि का भक्षण न करने पावे, अन्यथा मुद्रिका लौटाई नहीं जायेगी।' प्रद्युम्न ने स्वीकार कर लिया एवं अपने अश्व चरने के लिए मुक्त कर दिये ! किन्तु जब तक उद्यान के रक्षकों ने ध्यान दिया. तब तक तो अश्वों ने तण के अतिरिक्त अन्य वस्तुओं पर दृष्टिपात नहीं किया। लेकिन जब वे अन्यत्र चले गये तो वे मायामय अश्व समस्त उद्यान का भक्षण करने लगे। उन्होंने इन्द्र के नन्दन वन सदृश उस उद्यान को मानो मरुभमि में परिवर्तित कर दिया। साथ ही नदी के समस्त जल का शोषण कर लिया। परम कौतुकी प्रद्युम्न आगे बढ़ा। उसे एक अन्य रमणीक उद्यान दिखलाई पड़ा। विद्या से जिज्ञासा Jun Gun Aarade 138
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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