SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 139
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 236 P.P.AC.GurmanasunMS. प्रद्युम्न ने नारद से निवेदन किया- 'हे मुनिवर ! यदि आप अनुमति दें तो मैं नगर में हो जाऊँ।* नारद कहने लगे-'हे वत्स! यादवों की इस नगरी में तुम्हारा उन्मुक्त भ्रमण हितकर नहीं। सम्भव है तुम्हारी चपलता देख कर यादवगण उपद्रव कर बैठें।' उदधिकुमारी की भी यही राय थी। किन्तु चञ्चल कामदेव (कुमार) | कब माननेवाले थे? वे विमान को आकाश में स्थिर कर स्वयं भतल पर उतर पड़े। - नीचे उतरते ही प्रद्युम्न ने भानुकुमार को देखा। विभिन्न प्रकार की विभूतियों से सम्पन्न उस राजपुत्र को देख कर प्रद्युम्न को बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने तत्काल ही अपनी विद्या से जिज्ञासा की कि यह वीर कौन है ? विद्या ने बतलाया कि वह उसकी माता की सौत ( सत्यभामा) का पुत्र भानुकुमार है एवं बड़ा प्रतापी वीर एवं सर्वगुण सम्पत्र है। विद्या का उत्तर सुन कर प्रद्युम्न ने उसी समय 'प्रज्ञप्ती' नाम की महाविद्या का स्मरण किया एवं उसके प्रभाव से उन्होंने एक वेगशाली, चञ्चल एवं मनोहर अश्व की रचना की। स्वयं एक वृद्ध वणिक बन गया। उस अश्व को लेकर वह भानुकुमार के समीप जा पहुँचा। मानुकुमार ने अश्व को निहार कर जिज्ञासा की- 'हे वृद्ध ! यह तो बतलाओ कि यह अश्व किसका है एवं किस उद्देश्य से यहाँ लाये हो?' वणिक ने उत्तर दिया- 'हे श्रीकृष्ण-पुत्र ! यह अश्व मेरा है एवं इसे विक्रय के उद्देश्य से ही यहाँ लाया हूँ। आप सत्यभामा के पुत्र हो, इसलिये यह अश्व आपके योग्य है। यदि उचित समझें, तो इसे क्रय कर लें। अश्व को देख कर मानुकुमार सन्तुष्ट तो था ही, अतः उसने मूल्य के प्रति जिज्ञासा व्यक्त की। वणिक ने बतलाया कि वह इस अश्व के मूल्य स्वरूप एक कोटि मुद्रायें लेगा। मानकुमार ने समझा कि वणिक परिहास कर रहा है। किन्तु वणिक ने स्पष्ट किया कि वह इसे परिहास न समझे, क्योंकि बिना प्रसङ्ग के परिहास करना कुलीनों का लक्षण नहीं। उसने राजकुमार से निवेदन किया कि वह अश्व की परीक्षा कर के उसकी उत्तमता का निश्चय कर लें। वणिक का प्रस्ताव सुन कर भानुकुमार तत्काल उठा। वह उस चञ्चल अश्व पर आरूढ़ होकर उसे वेग से फिराने लगा। शक्तिशाली अश्व भी अपनी वक्र चाल से भ्रमण करने लगा। उसकी गति शनैः-शनै इतनी तीव्र हो गयी कि भानुकुमार के समस्त वस्त्र एवं आभूषण भूतल पर गिर पड़े। बाग ( लगाम) खींचने पर भी अश्व न रुक सका एवं अन्त में उसने भानुकुमार को ही पटक दिया। जब भानुकुमार पृथ्वी पर गिर पड़ा, तो अश्व Jun Gun Aaradhus 236
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy