SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 136
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ P.Ad Gunun MS दीक्षा ले ली। उनके साथ कनिष्ठ पुत्र विदुर भी मुनि हो गया। धृतराष्ट्र के दुर्योधनादि सौ प्रचण्ड बलवान पुत्र उत्पन्न हुए। राजा धृतराष्ट्र एवं पाण्डु ने जब यह देखा कि हमारे पुत्र तरुण हो गये, तब उन्होंने क्रमशः अपने-अपने ||233 ज्येष्ठ पुत्रों दुर्योधन रयं युधिष्ठिर को राज्य-भार सौंप दिया। किन्तु दुर्योधन फिर अपने छल-बल से पाण्डवों का राज्य हस्तगत कर स्वयं महाराज बन बैठा। दुर्योधन की एक रूपवती पुत्री है, जिसकी देहयष्टि एवं नेत्रों की लामा तारामण्डल के समकक्ष है। वह उदधि कुमारी जब उत्पन्न नहीं हुई थी एवं तुम भी माता के गर्भ में थे, उसी समय दुर्योधन ने उसका विवाह तुम्हारे साथ कर देने की प्रतिज्ञा की थी। फिर उत्पन्न होते हो तुम्हें दैत्य हरण कर ले गया। जब तुम्हारा अनुसन्धान न लगा, तब उदधिकुमारी के पिता ने तुम्हारे अनुज के साथ उसका विवाह करना निश्चित कर दिया है / उसी के साथ यह चतुरङ्गिणो सेना माथी है।' नारद मुनि से रोचक वर्णन को सुन कर अपनी भावी वधू के अवलोकन हेतु कुमार के हृदय में उत्सुकता जाग्रत हुई। उसने नारद से प्रार्थना की-'यदि आप आज्ञा दें, तो मैं जाकर देख आऊँ। नारद ने कहा'हे कुमार! मैं तुम्हें इसलिये नहीं जाने देना चाहता कि तुम वहाँ जाकर भी कौतुक करोगे। सम्भव है कुछ विघ्न उपस्थित हो जाए।' तब कुमार ने आश्वासन दिया कि वह किसी प्रकार की चपलता नहीं करेगा, अतः मुनि निश्चित रहें। नारद की आज्ञा ले कर कुमार विमान से नीचे उतरे। समस्त सेना भोजन के लिए बैठी हुई थी। प्रद्युम्न ने एक भील का भेष बनाया। वह स्वरूप देखने में बड़ा भयानक मालूम पड़ता था। मस्तक पर जटा, गज की सड़ के सदृश भुजायें, विशाल वक्षस्थल एवं रक्तवर्ण नेत्र दोख रहे थे। उसके वीमत्स रूप को देख कर दुर्योधन की समस्त सेना परिहास करने लगी। साथ ही कौरव राजकुमार बोल उठे-'रे दुर्मुख ! तू मार्ग में किसलिये खड़ा हो गया?' भील क्रोधित हो कर कहने लगा-'मैं महाराज श्रीकृष्ण की आज्ञा से यात्री कर लेने आया हूँ। मुझे कर चुका कर ही जा पाओगे।' श्रीकृष्ण का नाम सुन कर कौरव राजकुमार बोले- 'हे बन्धु ! तुम्हें क्या लेना अभीष्ट है ? गजराज, अश्व, रथ, धन-धान्य सभी वस्तुएँ हम दे सकते हैं।' भील ने कहा- 'हे राजकुमार! मुझे ज्ञात नहीं कि तुम्हारी सेना में कौन-सो सर्वोत्तम वस्तु है ? इसलिये || जो वस्तु श्रेष्ठ हो, वही मुझे दो। मैं सत्य कहता हूँ, मेरे योद्धा पथभ्रान्त का पथ-प्रदर्शन एवं योगक्षेम | क Jun Gun Aarov Trust 133
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy