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________________ करनेवाले हैं।' मील की उक्ति सुन कर वे कौरव वार मुस्करा कर बीत- मूर्स! जब तू सर्वश्रेष्ठ बस्तु || चाहता है, तो हमारी सेना में राजकुमारी उदधिकुमारी हो सर्वश्रेष्ठ है, क्या उसे तुमे दे दें?' मील हँसा एवं कहने लगा-'यदि वह कुमारी ही सेना में सर्वश्रेष्ठ है, तो उसी को दे दो। हमें सन्तुष्ट करने से नारायण || 234 श्रीकृष्ण भी सन्तुष्ट हो जायेंगे।' कुरूप भील की ऐसी बेतुकी बातें सुन कर कौरव राजकुमार क्रोधित होकर कहने लगे-'रे मूर्ख ! तू ऐसे निर्लज्जतापूर्ण वाक्य क्यों कहता है ? तुझ जैसे कुरूप के योग्य वह कन्या नहो है। यदि तू उस बाला को पाने की इच्छा करता है, तो अपना मुख कृष्णवर्णी (काला) कर ले।' कुछ सुमटों ने क्रुद्ध होकर कहा-'इस मूर्ख से क्यों वाद-विवाद करते हो ? नारायण श्रीकृष्ण असन्तुष्ट हो जायेंगे, तो क्या कर लेंगे? राजकुमारी इस भील को दे दें? यदि कोई राजकुमार होता, तो सोचा भी जाता।' ऐसा कह कर उन राजकुमारों ने धनुष पर बाण खींच लिये / भील वेशधारी प्रद्युम्न ने जब देखा कि ये उन्मत्त हो रहे हैं. तो वह खिलखिला कर हँसा। उसने कहा-'क्या तम लोग कुमारीको मझे न दोगे? मैं तो श्रीकृष्ण का ज्येष्ठ पुत्र हँ एवं इस वन में निवास करनेवाले भीलों का राजा हैं। यदि तम लोग उस कुमारी को मुझे दे दोगे, तो नारायण श्रीकृष्ण को भी परम सन्तोष होगा।' किन्तु कौरवों ने भील का कथन अनसना कर दिया। वे शीघ्र ही वहाँ से प्रस्थान करना चाहते थे। भील वैशधारी प्रद्युम्न ने अपनी विद्याओं का स्मरण किया। फिर तो क्या था, शीघ्र ही भीलों की एक विशाल सेना प्रस्तुत हो गयी। भीलों की कृष्णवर्णी सेना चारों दिशाओं से उमड़ पड़ी। वह सेना सर्वप्रकारेण उत्तमोत्तम आयुधों से सत्रद्ध थी। दोनों ओर के योद्धा परस्पर जा भिड़े। शीघ्र ही कौरव दल के वीर भीलों के प्रहार से व्याकुल हो गये, उनकी समस्त सेना तितर-बितर हो गयी। रथी, पदाति, अश्वारोही सब-के-सब रणक्षेत्र से पलायन करने लगे। भीलों को संग्राम में विजयश्री प्राप्त हुई। उसी समय मील वेशधारी प्रद्युम्न ने उदधिकुमारी को बाहुपाश में बाँध लिया। वह उसे लेकर आकाश में उड़ चला एवं भय-प्रकम्पित उस सुकुमारी को ले जाकर अपने विमान में बैठा दिया। वह कुमारी भील रूपी प्रद्युम्न का विकराल रूप देख कर विलाप करने लगी। विमान पर नारद मुनि को देख कर उसे महान आश्चर्य हुमा। उसने नारद को लक्ष्य कर कहा-'हा तात! मेरे पापोदय की ओर ध्यान करें। कहाँ महाराज श्रीकृष्ण Jun Gun Aaradha 234
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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