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________________ PR.AC . बोला-'हे प्रिये ! तुम मुझ से भय मत करो। मैं तुम्हारे साथ परिणय का अमिलाषी पाण्डु हूँ।' तब कुन्तो कह उठी- 'मैं ने तो सुना था कि आप कुष्ठ रोगी हैं। पर आप तो वैसे नहीं लगते हैं ?' पाण्डु ने उत्तर दिया- 'हे प्रियतमे ! यह सर्वथा निराधार अफवाह किसी शत्रु ने उड़ाई होगी। मेरा तो सर्वाङ्ग निरोग है।' || 132 इतना सुन कर कुन्ती भी उसके रूप-पाश में उलझ गयो। पाण्डु ने उस कल्याणरूपा कामिनी के साथ प्रसन्नतापूर्वक रमण किया। इस प्रथम संगम के समय कुन्ती की देहयष्टि भय से प्रकम्पित हो रही थी। इसके पश्चात् उन दोनों का स्नेह इतना प्रगाढ़ हो गया कि पाण्डु वहाँ सप्त.दिवस पर्यंत रहा। सातवें दिन जब उन्होंने प्रस्थान का उपक्रम किया, तब कुन्ती ने नम्र होकर कहा-'हे नाथ ! माप तो प्रस्थान हेतु तत्पर हो रहे हैं, किन्तु मैं एक रहस्य सङ्कोचवश प्रकट नहीं कर सकती।' पाण्डु ने कहा- 'अब लज्जा किस बात की ? निःसङ्कोच होकर कहो। कुन्ती ने बतलाया- 'जिस दिन आप का आगमन हुआ, उस दिन मेरे मासिक-धर्म का चतुर्थ दिवस था। यदि मैं संयोग से गर्भवती हो गयी, तो बतलाइये क्या करूँगो ?' कुन्ती को चिन्ता उचित समझ कर पाण्डु ने अपना कड़ा उतार कर उसे दे दिया। मार्ग में उन्होंने उस उपकारी विद्याधर को मुद्रिका भी लौटा दी। ___इधर जब छ: मास व्यतीत हुए, तब कुन्ती की देह में गर्भ के लक्षण स्पष्ट प्रकट होने लगे। सखियों ने समस्त वृत्तान्त उसकी माता से कहा। यह सम्वाद राजा तक जा पहुँचा। उसने लज्जित होकर अपनी रानी से कहा-'तुम जा कर उससे पूछो कि किस दुष्ट से उसने यह गर्भ धारण करवाया है ?' रानी ने कुन्ती से जिज्ञासा को, तब उसने बतलाया -'हे माता ! तुम चिन्ता मत करो। यहाँ पाण्डु स्वयं आये थे एवं उन्होंने मेरे साथ सहवास किया था। साक्षी-स्वरूप उनका यह कड़ा मैं प्रस्तुत कर सकती हूँ।' रानी उस कड़ा को | लेकर राजा के समीप गयी। समस्त वृत्तान्त जान कर वे मौन रह गये। जब गर्भ पूर्ण हो गया, तो कुन्ती के | एक पुत्र उत्पन्न हुआ। किन्तु लोक-लाजवश कलङ्क के भय से राजा ने उसे एक मंजूषा में रख कर यमुना नदी में प्रवाहित करा दिया स्वं कालान्तर में कुन्ती का पाण्डु के साथ विधिवत् विवाह कर दिया। विवाहोपरान्त कुन्ती के युधिष्ठिरादि तीन विलक्षण पुत्र उत्पन्न हुए। कौमार्यावस्था में जो पुत्र उत्पन्न हुआ था, उसका नाम कर्ण पड़ा। कुछ समय बाद महाराज धृत ने धृतराष्ट्र एवं पाण्डु को राज्य दे कर स्वयं जिन Jun Gun Aarh us 132
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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