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________________ PP Ad Gunun MS // हुजा। उसक पश्चात् क्रम से हजारों राजे हुए। अनेक पीढ़ियों के उपरान्त एक धृत नामक राजा हुआ, जिसकी तीन रानियाँ थीं-अम्बा, अम्बिका एवं अम्बालिका। तीन रानियों के गर्भ से तीन पुत्र हुएधृतराष्ट्र, पाण्डु एवं विदुर। ये तीनों ही बड़े प्रतापशाली हुए। इनमें से धृतराष्ट्र की गान्धारी नाम की रानी हुई। (दूसरे पुत्र पाण्डु की कथा पुराणों में वर्णित है, जिसका संक्षेप में वर्णन करते हैं।) प्रारम्भ में धत ने कमार पाण्ड का विवाह सर्यपर के राजा अन्धक-वृष्टि की कन्या कुन्ती से करने का निश्चय किया था। किन्तु किसी ने कुन्ती के पिता से कह दिया कि पाण्डु को कुष्ठ रोग है, इसलिये उन्होंने विवाह-प्रस्ताव को अस्वीकत कर दिया। पाण्ड को जब यह सचना मिली. तब उसे बडा दःख हमा। वह अहर्निश चिन्तित रहने लगा। एक दिन पाण्डु कदली वन में गया था, वहाँ वन में एक शैय्या दिखलाई दी, जो मसली हुई थी। उसने विचार किया- अवश्य ही उस स्थान पर किसी पुण्यात्मा ने अपनी प्रिया के साथ रमण किया है / मैं पुण्यहोन हूँ, जिससे मेरी प्रिया मुझे प्राप्त नहीं हुई, वह दुःखित हृदय से शैय्या की ओर देखते रहा, तब उसे शय्या के समीप ही पड़ी हुई एक मुद्रिका मिली, जिसे धारण कर वह यत्र-तत्र भ्रमण कुछ काल पश्चात शैय्या का स्वामी विद्याधर आ पहँचा। उसने जब वहाँ मद्रिका न देखी. तो / उसका मुख मलीन पड़ गया। उसे दुःखित देख कर पाण्डु ने कारण पूछा / तब उसने कहा- 'मेरी मुद्रिका खो गयी है।' पाण्डु ने तत्काल हो उसे मुद्रिका दे दी। पाण्डु का उत्तम चरित्र देख कर विद्याधर बडा सन्तष्ट हुआ। उसने भी जिज्ञासा को-'तुम चिन्तित क्यों हो?' तब पाण्डु ने अपनी समस्त दुःख-गाथा उसे सुना दी। उसने कहा-'मेरो यह मुद्रिका कामरूपदा है, इसके प्रभाव से अपनी इच्छा की पूर्ति कर लेना एवं जब तुम्हारा कार्य सफल हो जाए, तो मुद्रिका मुझे लौटा देना।' कुमार पाण्डु ने मुद्रिका ग्रहण कर ली। उसके हर्ष का पारावार न रहा। मुद्रिका के प्रभाव से पाण्डु ने अपना स्वरूप कपोत का बनाया एवं वहा से उड़ कर कुन्ती के नगर में | जा पहँचा। रात्रि में महल में प्रविष्ट होकर उसने कामदेव का रूप धरा एवं जा पहुँचा, जहाँ कुन्ती निद्रामग्न || थी। जब कुन्ती की निद्रा भङ्ग हुईं, तब वह एक अपरिचित पुरुष को अवलोक कर भय से प्रकम्पित हो उठी। उसने प्रश्न किया-'भाप कौन हैं एवं मेरे महल में क्यों नाथे हैं ?' कुमार पाण्डु मुस्करा कर || PILEPSponr
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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