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________________ P.P.AC D ? भ्रष्ट राजा हेमरथ ने उधर ध्यान ही नहीं दिया। अपशकुन को अनदेखा करता हुआ वह वटपुर की ओर चल पड़ा। ठीक हो है, होनहार का प्रतिकार नहीं किया जा सकता। राजा हेमरथ के चले जाने पर एक विचित्र घटना हुई। राजा मधु ने तत्काल मन्त्री को बुलाया। उसने कहा-'मेरी प्राणप्रिया कमलनयनी चन्द्रप्रभा को शीघ्र ले आओ, अब विलम्ब सह्य नहीं।' मन्त्री ने कहा'हे महाराज! कुछ काल तो धैर्य रखना होगा। रात्रि के समय समागम उचित होगा।' राजा को किंचित संतोष हुआ। उसने ज्यों-त्यों कर के दिवस की शेष घड़ियाँ व्यतीत की। इसके पश्चात् मन्द गति से सूर्य अस्ताचल की ओर गमन कर गये। वे चक्रवाक को दुःखी, कमलों को सङ्कुचित एवं कामीजनों को प्रसन्न तथा पश्चिम दिशा को रक्तवर्ण करते हुए अस्त हो गये। संध्या ने विचित्र रूप धारण कर लिया। उसका भाकाशरूपी आँगन पञ्चवर्णी हो गया / सूर्य के प्रखर ताप से जिस अन्धकार का लेशमात्र मी सन्धान नहीं था, वह अवसर पाकर अपने साम्राज्य का विस्तार करने के लिए चतुर्दिक विस्तीर्ण हो गया। उसके विस्तार से ऊँच-नीच, सम-विषम, स्थिर-अस्थिर अर्थात् सभी वस्तुएँ समान प्रतीत होने लगीं। रात्रि में ताराओं की ऐसी शोभा हुई, जैसे नीलमणि की भूमि पर मालती के पुष्प बिखरे हों। चन्द्रमा की धवल चाँदनी पृथ्वो तल पर फैल गयी। उसने भूमण्डल को दुःखो देख कर अपने किरणरूपी बाण छोड़े। इस प्रकार रात्रि के प्रथम प्रहर में जब चाँदनी खिल रही थी, उस समय चतुर मन्त्री के परामर्श से राजा ने एक दूती को अपनी प्रिया के पास भेजा। चतुर दुती चंद्रप्रभा के निकट पहुँची। उसने चंद्रप्रभा को विनयपूर्वक नमस्कार किया। उसने कहा'हे देवी! मैं राजा मधु का एक गोपनीय सन्देश लेकर आई हूँ। उसे कृपया ध्यानपूर्वक सुनो।' चन्द्रप्रभा की स्वीकृति पर वह कहने लगी- आज की ही घटना है। महाराज मध अपने राजमहल में आसीन थे। अकस्मात राजा हेमरथ के दूत ने आकर निवेदन किया कि उनके राजा ने मेरे द्वारा सन्देश भेजा है कि यथाशीघ्र चन्द्र प्रभा को आप रवाना कर दें। यदि उनके प्रति आप का स्नेह है. तो इस कार्य में विलम्ब न होने पाये। अतः महाराज मधु से आप को आज ही भेज देने का अनुरोध किया है। आप मेरे सङ्ग राजमहल तक चलें। आप के आभषण जो बनाने के लिए दिये गये हैं. वे अभी तक तैयार नहीं हो पाये हैं। इसलिये राजा का विचार है कि अपनी रानियों के ही आभूषण मेंट में देकर कल ही आप को विदा कर दें।' दासी के वचनों को सुन कर Jun Gun Aaradhat
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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