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________________ ORTENauspearespearedeoश्रीजयशंग्वरमणिविर्गचतं श्रीनलदमयन्तीचरित्रम Baapooisseuparveodeg सरलार्थ:- कमलमिव क्लान्तं तं मुनिमवलोक्य पन्यस्य मनसि अदभुता भक्तिः समुदपयत सः छत्रपरः यथा नृपस्य शिरसि छत्रं दयाति 卐 तथा तस्य मुनेः मस्तके छत्रम् अपारवत् / / 935|| ગુજરાતી:- કમલની પેઠે કરમાઈ ગયેલા એવાતે મુનિરાજને જોઇને અદભુત ભકિતભાવપૂર્ણ બનેલો ધન્ય રાજાના છત્રધરની પેઠે તેના મસ્તક પર છત્ર ધારણ કરી રહ્યો.il૯૩પા 卐हिन्दी :- कमल के समान मुरझाये हुए मुनिराज को देखकर धन्य के मन में अद्भुत भक्तिभाव उत्पन्न हुआ और उस धन्य ने राजा के छत्रधर के समान उनके मस्तक पर छत्र धारण किया // 935 // मराठी:- कमलाप्रमाणे म्लान झालेल्या त्या मुनिराजाला पाह्न धन्याच्या मनातं अतिशय भक्ति उत्पन्न झाली व छत्रधारी नोकर जसा राजाच्या डोक्यावर छत्र परतो. त्याप्रमाणे त्या धन्याने त्या मुनिराजाच्या डोक्यावर छत्री धारण केली. // 935|| WEnglish - Seeing the monk who seemed like a wittered and wizen lotus, Dhany with utmost devotion held up his umberella fo the monk as the one who holds the umberalla for a king. 騙騙騙听听 नव्यरंसीद्घनो वृष्टेरतित्यागीव दानतः॥ धन्यस्यापि परिणाम: स तथा तं मुनिं प्रति // 936 // 卐अन्वयः- अतित्यागी दानत: इव घन: वृष्टे: नव्यरंसीदा तथा धन्यस्य अपितं मुनि प्रति स: परिणाम: नव्यरंसीत् // 936 // विवरणम:- अतिशयेन त्यागः अस्यास्ति इति अतित्यागी यथा वानत: वानात् न विरमति तथा मेघ: घन: अपि.वृष्टः वर्षणात् न व्यरंसीत् नव्यरमता तथा धन्यस्यापि तं मुनि प्रति समुतन्नःशुभः परिणाम: नव्यरंसीत् नव्यरमत् // 936 // सरलार्प:- अतित्यागी थथा दानात् न विरमति / तथा पनः वृष्टेः न व्वरमत्। एकमेव धन्यस्यापि तं मुनिं प्रति समुत्पन्न: शुभः परिणामः न व्यरंसीत् // 936 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036462
Book TitleNal Damayanti Charitrayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayshekharsuri, Sarvodaysagar
PublisherCharitraratna Foundation Charitable Trust
Publication Year
Total Pages915
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size93 MB
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