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________________ ORRENASIKHOSPIRANBISAPosts श्रीणयशेखरसूरिविरचितं श्रीनलदमयन्तीचरित्रम् SAGARoseeosengerely गिरीन्द्रामिव नि:कम्पमेकपादिकया स्थितम्॥ अटवीं पर्यटन् धन्यो मुनिमेकं ददर्श सः॥९३४॥युग्मम्।। अन्वय:- अटवीं पर्यटन स: धन्य: एकपादिकया गिरीन्द्रमिव नि:कम्पं स्थितम् एकं मुनि वर्श // 13 // विवरणम्:- अटवीमरण्यं पर्यटन्भ्रमन्सः धन्य: एक: पाद: यस्यां क्रियायांसाएकपादिका, तयाएकपादिकया एकपादेन गिरीणाभिन्द्रः, तं गिरीन्द्र मेरुपर्वतमिव निर्गत: कम्प: यस्मिन् कर्मणि यथा स्यात् तथा नि:कम्पं कम्परहितं स्थितम् एकं मुनि यदर्श अद्राक्षीत् // 934 // सरलार्थ:- अटवीं भ्रमन सः पन्यः एकपादेन मेरुपर्वतमिव निष्कम्पं स्थितमेकं मुनिम् अद्राक्षीत् // 934 // ગુજરાતી:- મેરુ પર્વતની પેઠે નિષ્ઠપપણે એકપગે ઉભેલા એક મુનિરાજને જંગલમાં ભટકતાં એવા ધને જોયા. 934 हिन्दी :- मेरु पर्वत के समान अडिग एक पैर पर खडे ऐसे एक मुनिराज को जंगल मे भटकते हुए उस धन्य ने देखा। // 934 // मराठी :- अरण्यात भटकत असलेल्या त्या पन्य गवळवाला मेरू पर्वताप्रमाणे एका पायावर निष्कंप उभा असलेला एक मुनि दिसला.।।९३४॥ English :- When, one day as Dhany was wandering about in the forest, he happened to see an ascetic deep and still in medition on one leg, as the mount of meru. दृष्टा वारिजवत्क्लान्तं तं जाताभुतभक्तिकः॥ . छत्रधर इवेशस्य छत्रं तस्य शिरस्यधात् // 935 // अन्वय:- वारिजवत् क्लान्तं तं दृष्ट्वा जाताद्भुतभक्तिक: ईशस्य छत्रधरः इव तस्य शिरसि छत्रम् अधात् // 935 // 卐विवरणम्:- वारिणि जायते इति वारिज कमलम्। वारिजेन तुल्यं वारिजवत् क्लान्तं म्लानं तं मुनि दृष्टा अवलोक्य अद्भुता चासौ भक्तिः च अद्भुतभक्तिः। जाता अद्भुतभक्तिः यस्य सः जातावभुतभक्तिक: स: धन्य: इरास्य स्वामिनः नृपस्य छत्रं धरतीति छत्रधरः इव तस्य मुनेः शिरसिमस्तके छत्रम् अधात् अधारयत्॥९३५॥ 飞听听听听听听听听听听听听听听听听听惊
SR No.036462
Book TitleNal Damayanti Charitrayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayshekharsuri, Sarvodaysagar
PublisherCharitraratna Foundation Charitable Trust
Publication Year
Total Pages915
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size93 MB
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