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________________ NROdossessedusersears श्रीजयशेखरसूरिविरचितं श्रीनलंदमयन्तींचरित्रम् SRPRISTRIBoareer Staff FAFARA SFF FFA अन्वय:- भैमी उवाच भद्रे / असौ वरमाला वृता अभवत् / तत् श्रुत्वा भवा अस्य अन्योक्तिः एव निरासः इति अबोधि // 59 // विवरणम:-भीमस्य अपत्यं स्त्री भैमी वमयन्ती उवाच अवोचत् हेभने / असौ वराय माता वरमाला व्रता शीघ्रम् उत्सका उत्का अभवत् / बभूव / अभूत् / तत् श्रुत्वा तवाकर्ण्य निशम्य भद्रा अचिन्तयत् - अस्य अन्यम् उद्दिश्य उक्ति: अन्योक्तिः। अन्या चासौ उक्तिश्च अन्योक्तिः। एव निरास: निरसनं तिरस्कारः इति एवम् अबोधि अबोधत् बुबोध।। सरलार्य :- भैमी दमयन्ती अकयवत् हे भने / असो वरमाला द्वता अभवत् - तदाकी भद्रा व्यचारवत् अस्य अन्योक्तिः एव निरासः इति अबोधि / / 59 // Jal:-(AIR) Enीबोबी, १२माणीवारछे, णीने प्रतिडाशय दिया, तीन આ અસોનિજ ખરેખર રાજનાં તિરસ્કારરૂપ છે. પલા. हिन्दी:- (तब) दमयंती बोली कि, हे भद्रे ! यह वरमाला उतावली हो रही है, यह सुनकर प्रतिहारीने (दासीने) विचार किया कि, दमयंती की यह अन्योक्ति ही वास्तव में राजा के लिए तिरस्कार युक्त है // 59 // मराठी :- (तेव्हां) दमयंती म्हणाली की, हे भद्रे / ही वरमाळा पाई करीत आहे, हे ऐकून प्रतिहारीने (दासीने) विचार केला की, दमयंतीची ही अन्योक्तिच खरोखर राजाचा तिरस्कार करीत आहे. // 59 / / English :- At this Damyanti said that, the garland is tenacious and restless to go ahead. At this reply, the chambarmaid understood that, Damyanti has rejected the king and wishes to walk ahead, by her stern words of rejection. ततो भूय: पुरोभूय, साभ्यधाद्गुणरागिणि॥ दानधर्मसमिद्वीरो- ऽवन्तीश: किं न रोचते॥६०॥
SR No.036462
Book TitleNal Damayanti Charitrayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayshekharsuri, Sarvodaysagar
PublisherCharitraratna Foundation Charitable Trust
Publication Year
Total Pages915
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size93 MB
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