________________ OMostessीणयशेखरसूरिविरणितं श्रीनलदमयन्तीचारित्रम् SRASARASRAJASBABASWAsaweedeSee भैम्यूथे कथमेषोऽपि दुःखमोक्षं न मेऽकृत। सहकारे तदस्मिन् स्वं भवाम्युबध्य निर्वृता / / 782 // अन्वय:- भैमी ऊचे - कथम् एष: अपि मे दु:खमोक्षं न अकृता तद् अस्मिन् सहकारे स्वम् उद्घध्य निर्वृता भवामि // 782 // विवरणम्:- भीयस्यापत्यं स्त्री भैमी दमयन्ती ऊचे बभाषे कथम् एषः सिंह: अपि मे मम दुःखात् मोक्ष: दु:खमोक्षः, तंदुःखमोर्शन अकृता एषः सिंह: अपि मांदु:खात न अमोचयत् / तद् तस्मात् कारणात् अस्मिन् सहकारे आप्रवृक्षे स्वमात्मानम् उडाध्य ऊर्ध्वम् बद्ध्या निवृता सुखिनी भवामि // 782 // सरलार्थ:- दमयन्ती अभाषत - एष: सिंह: अपि मम दुःखमोक्षं न अकरोत् / अत: अहमस्मिन आम्रवृक्ष स्वध्वं बदवा निर्वता भवामि l/૦૮રા. જરાતી:- પછી દમયંતી બોલી કે, અરે આ સિંહે પણ મને દુ:ખમાંથી કેમ ન છોડાવી? માટે આ આંબાના વૃક્ષ પરથી ગળે ફાંસો ખાઈને હું આપઘાત કરું..I૭૮૨ हिन्दी :- फिर दमयंती बोली कि, "अरे इस सिंह ने भी मुझे दु:ख में से क्यों नही छुडाया? इस लिये अब मैं इस आम्रवृक्ष पर गले को फांसी लगाकर आत्महत्या करती हूँ।"॥७८२॥ मराठी:- मग दमयंती म्हणाली की "अरे या सिंहाने पण मला दुःखात्न का सोडविले नाही? म्हणून आता था आंब्याच्या वृक्षावर गळ्याला फास लावून मी सुखी होते (अपयात करून येते) // 782 / / " English :-Damyanti then lamented because the lion too did not make her free from all her a gony by devouring her up, so she disides to commit suicide by hanging herself from the mango-tree. दिशोऽवलोक्य हा आर्यपुत्रेयमकृपालुना॥ त्यक्ता त्वया विना दोषमशरण्या विपद्यते // 783 // 3 अन्वयः- दिश: अवलोक्य हा आर्यपुत्रा अकृपालुना त्वयात्यक्ता इयम् दोषं विना अशरण्या विपद्यते // 783 //